For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उनका रोज़ा, उनकी ई़द (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"क्या कर रहा है बे, सब खा-पी रहे हैं और तू अपने स्मार्ट फोन में भिड़ा हुआ है!" थ्री-स्टार होटल में चल रही ज़बरदस्त पार्टी में दोस्तों के बीच बैठे दीपक ने असलम से कहा।
"माह-ए-रमज़ान का चाँद दिख गया है, मुबारकबाद के ढेरों संदेशों के जवाब दे रहा हूँ!" - असलम ने सोशल साइट्स पर अपना संदेश सम्प्रेषित करते हुए कहा और कोल्ड-ड्रिंक पीने लगा। आज वह दोस्तों से लगाई शर्त हार गया था, सो इतनी महँगी पार्टी देनी पड़ी थी।
"यार, ये तो बता कि तू भी सचमुच कल से रोज़े रखेगा, कैसे रह लेता है भूखे-प्यासे नौकरी करते हुए!" - दीपक ने फिर उसे छेड़ते हुए कहा।
"देख, दीपक, तुम सब जो पीना चाह रहे हो, पी रहे हो; जो खाना चाह रहे हो, बड़े चाव से खा रहे हो, क्योंकि तुम्हारी तीव्र इच्छा थी, कई दिनों से। मैं सिर्फ कोल्ड ड्रिंक पीकर तुम सबका साथ दे रहा हूँ न! दोस्तों मैं अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना सीख चुका हूँ , इसलिए रोज़े रखना मेरे लिए कठिन नहीं है, बल्कि माह-ए-रमज़ान से ही यह सब मुमकिन हुआ है!"
"अब चुप भी कर साधू महाराज, तू नहीं सुधरेगा!" एक दोस्त ने कटाक्ष किया।
"महाराज, हमारी तरफ़ से भी आपको रमज़ान मुबारक़ हो!" सभी दोस्तों ने चियर्स करते हुए असलम से कहा।
"आप सब को भी बहुत बहुत मुबारक़बाद" असलम खड़े होते हुए बोला- "इस माह सभी धर्मावलंबी यदि दस-बारह घंटों के रोज़े रखने का अभ्यास, प्रयास करें, तो काफी जल और अन्न बचेगा जो ज़रूरतमंद लोगों तक पहुंचाया जा सकता है। यह पवित्र माह केवल भूखे-प्यासे रहने और अल्लाह की इबादत के लिए ही नहीं है, बल्कि इंसान को अपनी पाँचों इंद्रियों , इच्छाओं, और उसकी सभी भूखों को नियंत्रण में रखने का एक मास का वार्षिक प्रशिक्षण शिविर और सेमिनार है। इस से अपराध और आपराधिक प्रवृत्ति पर अंकुश भी लग सकता है!
"जय हो महाराज, जय हो!" सभी दोस्तों ने एक स्वर में कहा।
"अबे, भाषण पेल रहा है, ख़ुद तो एक महीने सेहरी और रोज़ा-अफ़्तारी में माल उड़ायेगा, हमसे बात करता है!" दीपक ने ठहाका लगाते हुए कहा।
"नहीं मेरे भाई, ऐसा नहीं है! अत्यल्प आहार से ही सेहरी और रोज़ा-अफ़्तार होता है। रोज़े में त्याग और इबादत करने वाले रोज़दार की हौसला अफ़ज़ाई हेतु कुछ अतिरिक्त स्वादिष्ट व्यंजन खाने-खिलाने की तो परम्परा चल पड़ी है, बस!" इतना कहकर असलम एकदम चुप हो गया।
"अब कह तो दे अपनी पूरी बात!" एक दोस्त ने कहा।
"अरे, धर्म-सम्प्रदाय भूल कर ज़रा उन पर भी ग़ौर फ़रमाओ, जो मेहनत मशक्कत करके भूखे-प्यासे रहकर सुबह या शाम की रोटी मुश्किल से हासिल कर पाते हैं! ग़रीबों-मुफ़लिसों की भूख-प्यास को तो हर रोज़ मिलता है इबादत का आसरा! हर रोज़ रोज़ा; कुछ घूंट पानी और कुछ निवालों पर ई़द!"



[मौलिक व अप्रकाशित]

Views: 901

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 29, 2017 at 6:44am
मेरी इस लघुकथा पर समय देकर अनुमोदन व हौसला अफजाई के लिए सभी आदरणीय पाठकगण व सुधीजन को तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 10, 2016 at 4:58am
जी बिलकुल, वह उत्कृष्ट लघुकथा तो मैं भी पढ़ चुका था।बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहब।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 10, 2016 at 1:03am
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 9, 2016 at 6:41pm
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, कृपया उस लघुकथा का शीर्षक भी बता दीजिए ताकि मैं भी उससे भी सबक़ व प्रेरणा हासिल कर सकूं।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 9, 2016 at 1:25pm

आदरणीय शेख शहज़ाद जी, बेतक़ल्लुफ़ से मेरा आशय बेलौस (Carefree) होने से है. अपनी बाकी बातों पर आप ध्यान दें तो स्वयं ही कई उत्तर मिलेंगे. भाईजी, प्रश्न करना उचित है, लेकिन प्रश्न करने के लिए किये गये प्रश्नों पर क्या कहा जाये ? बातों को दिल पर न लेकर दिमाग पर यदि हम लें, तो रचनाकर्म में गुणात्मक सुधार होगा इसमें संशय नहीं. बाकी रचनाकार या अभ्यासकर्ता अपने विषय में क्या लेते है यह नितांत व्यक्तिगत रुचि पर निर्भर करता है. वैसे इन्हीं पन्नों में ईद के मौके पर मैंने ही अपनी पहली लघुकथा लिखी थी. वह लघुकथा तब प्रशंसित भी हुई थी.  

शुभ-शुभ

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 9, 2016 at 12:05pm
जी बिलकुल सही फ़रमाया आपने मोहतरम जनाब सौरभ पाण्डेय जी। अभ्यास कर्म के तहत मन में अचानक सूझे कथानक पर सामयिक लेखन प्रयास हुआ है। लाभ होता है या नहीं, यह तो नहीं कह सकता, लेकिन एक सकारात्मक संदेश सम्प्रेषण हुआ है इस रचना में, ऐसा मुझे लगा। एक संवाद भाषण जैसा हो गया है, लेकिन इरादतन वास्तविक संदेश देने हेतु। इस तरह के संवाद मित्र मंडली में होते देखे-सुने गये हैं। पवित्र मन व इरादे से ही लिखने की कोशिश की है। हाँ, कुशल लघुकथाकार इसे उचित सांचे में ढाल सकते हैं। आपसे एक विनम्र निवेदन है कि इस या इस जैसे कथानक व संदेश वाली माह-ए-रमज़ान पर केन्द्रित कोई लघुकथा यदि आपने कहीं पढ़ी, सुनी हो, तो मुझे ज़रूर बताइयेगा, उपलब्ध कराइयेगा, ताकि मैं ऐसे कथानक व विषय पर प्रभावोत्पादक सटीक लघुकथा लिखने की पुनः कोशिश कर सकूं। मैंने यह सोचकर यह सामयिक रचना यहाँ पोस्ट की कि यह एक नवीन, उम्दा सार्थक प्रयास माना जाएगा। क्या इसमें कोई शब्द,वाक्य या संदेश आपको नकारात्मक लगता है, जिस कारण "बेतक़ल्लुफ़़" होने का ज़िक्र आपने किया? इस तरह के व्यंगात्मक संवाद दोस्तों के बीच होते देखे गये हैं, व्यक्तिगत अनुभव भी रहा है।मैं मानता हूँ कि दूसरे धर्म/सम्प्रदायों के बारे में फैली/फैलायी जा रही भ्रांतियाँ दूर करने के लिए इस तरह की लघुकथायें भी लिखी जानी चाहिए। यदि मैं इस कोशिश में सफल नहीं हुआ हूँ, तो हमारे साथी व वरिष्ठजन ऐसी संदेश वाहक लघुकथायें सृजित करते रहें। आपने इस रचना पर समय देकर अपनी बेबाक टिप्पणी द्वारा मुझे मार्गदर्शन प्रदान किया, यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है। आशा है रचना पर अब पुनः विचार कर मेरी सद्भावना अनुरूप मेरी टिप्पणी का उत्तर देकर मुझे मार्गदर्शन अवश्य देंगे।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 9, 2016 at 12:18am

आदरणीय शेख शहज़ाद भाई, रमज़ान के महीने में मन पवित्र हो.. 

जहाँ तक इस प्रस्तुति की बात है. भाई, इस प्रस्तुति से सिवा मौके पर कुछ कहने के अलावा और क्या लाभ हो पाया ? मुझे संवादों में भी बहुत सटीकपन नहीं दिखा, जबकि सारे दोस्त बेतकल्लुफ़ होने की पूरी कोशिश करते दिख रहे थे. 


वस्तुतः, लघुकथा को लेकर मेरी समझ सवालिया हो सकती है. इस मंच पर माना भी जाता है. लेकिन एक पाठकीय प्रतिक्रिया यही होगी कि प्रस्तुति सपाट ढंग से परम्परा को भावुक शब्दों के साथ याद करती दिख रही है. 

आप इस प्रस्तुति को अभ्यासकर्म के रूप में ले रहे हैं और तदनुरूप आपका प्रयास चल रहा है तो आप सदिश हैं.

शुभ-शुभ

 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 8, 2016 at 10:56pm
रचना के मर्म का अनुमोदन करने व स्नेहिल प्रोत्साहन देने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया नीता कसार जी।
Comment by Nita Kasar on June 8, 2016 at 9:28pm
रमज़ान के बारे में रमज़ान माह में लिखी कथा ने सार्थक संदेश दिया है,रोज़े का मतलब खानापीना ही नही खुदा की बंदगी भी है ।बधाई आपको आद०शेख शहज़ाद जी ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 8, 2016 at 4:21pm
जी बिलकुल सही फ़रमाया आपने मोहतरम जनाब डॉ. विजय शंकर साहब। इस तात्कालिक सामयिक प्रयास के अनुमोदन व स्नेहिल हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"स्वागतम"
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar joined Admin's group
Thumbnail

सुझाव एवं शिकायत

Open Books से सम्बंधित किसी प्रकार का सुझाव या शिकायत यहाँ लिख सकते है , आप के सुझाव और शिकायत पर…See More
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। विलम्ब से उत्तर के लिए…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आयोजन की सफलता हेतु सभी को बधाई।"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। वैसे यह टिप्पणी गलत जगह हो गई है। सादर"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार।"
19 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)

बह्र : 2122 2122 2122 212 देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिलेझूठ, नफ़रत, छल-कपट से जैसे गद्दारी…See More
20 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आपने अन्यथा आरोपित संवादों का सार्थक संज्ञान लिया, आदरणीय तिलकराज भाईजी, यह उचित है.   मैं ही…"
21 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी बहुत शुक्रिया आपका बहुत बेहतर इस्लाह"
22 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service