For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

यदि ये बर्फ़ पिघलती है-ग़ज़ल

22 22 22 22 22 22 22 2


राजनीति से जिन लोगों की, रोज़ी रोटी चलती है।
सच का करें विरोध अगर वो, तो उनकी क्या गलती है।।

किन्तु लेखनी वाले लोगों, से मेरा बस प्रश्न यही।
उनकी नैतिकता क्यों झूठे रंगों में हाँ ढ़लती है।।

वर्ग विभाजन लोकतंत्र में तो बस सत्ता की कुंजी।
किन्तु नीति यह सृजन क्षेत्र में आख़िर काहें मिलती है।।

यद्यपि आज़ादी से लेकर तुझसे नेता कई लड़े।
फिर भी अरे गरीबी तेरी चूल न काहें हिलती है।।

सोचो नफ़रत से कुछ हासिल, कौन यहाँ पर कर पाया।
ईर्ष्या वाली आग हृदय में, फिर बोलो क्यों जलती है।।

सरकारों नें अगर बख़ूबी, अपना फ़र्ज़ निभाया तो।
आज तलक भारत की जनता, सिर्फ़ हाथ क्यूँ मलती है।।

थोड़ा सा हम बदल रहे हैं थोड़ा सा तुम भी बदलो।
शीतल मन्द बयार बहेगी, यदि ये बर्फ पिघलती है।।

मौलिक-अप्रकाशित

Views: 601

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 7, 2016 at 12:55pm
आदरणीय समर कबीर सर, सादर प्रणाम। ग़ज़ल की तारीफ के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 7, 2016 at 12:52pm
आदरणीय गोपाल सर सादर प्रणामआभार और तरफ के लइये बहुत बहुत आभार
Comment by Samar kabeer on May 6, 2016 at 10:53pm
जनाब पंकज कुमार मिश्रा जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई भाई,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।
जनाब मिथिलेश जी का सुझाव उत्तम है ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 6, 2016 at 5:38pm
पंकज जी बेहतरीन गजल कही आपने .
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 6, 2016 at 10:01am
आदरणीय मिथिलेश सर सादर प्रणाम। ग़ज़ल पर सार्थक प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार। समुचित सुझाव के लिए बहुत बहुत आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 6, 2016 at 12:58am

आदरणीय पंकज जी, बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. हार्दिक बधाई. थोड़ी सी गुंजाइश वाक्य विन्यास की लग रही है. यदि उचित लगे तो इस पर विचार कीजियेगा. जैसे -

सोचो नफ़रत से कुछ हासिल, कौन यहाँ पर कर पाया।

सोचो कौन यहाँ कर पाया, नफरत से कुछ भी हासिल ?

सोचो कौन यहाँ नफरत से, कुछ भी हासिल  कर पाया ?

Comment by Ram Ashery on May 5, 2016 at 2:35pm

आपने को बड़े ही सहज धग से प्रस्तुत किया अप को बहुत बहुत बधाई स्वीकार हो 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 5, 2016 at 1:31pm
आदरणीय सुशील सरना सर बहुत बहुत आभार आपका। सादर प्रणाम
Comment by Sushil Sarna on May 5, 2016 at 1:09pm

थोड़ा सा हम बदल रहे हैं थोड़ा सा तुम भी बदलो।
शीतल मन्द बयार बहेगी, यदि ये बर्फ पिघलती है।।

वाह आदरणीय पंकज जी बहुत ही सुंदर और यथार्थपरक अशआर कहे हैं आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय इस प्रस्तुति पर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"एक ग़ज़ल २२   २२   २२   २२   २२   …"
24 minutes ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
12 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
21 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service