For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़िन्दगी से जो मिला, अच्छा मिला (ग़ज़ल)

2122 2122 212

नेक-नीयत रख के आखिर क्या मिला
हर कदम पर हाँ मगर धोखा मिला

कौन दुश्मन,किसको कहते खैरख्वाह
हर कोई क़ातिल से मेरे था मिला

मांगने वालों की झोली ना भरी
जिसने ना माँगा उसे ज़्यादा मिला

यूं लगा कोई खज़ाना मिल गया
बीस पैसे का जब इक सिक्का मिला

बेवफ़ाई, बेबसी, ग़म, शाइरी
ज़िन्दगी से जो मिला अच्छा मिला
========================

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 819

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जयनित कुमार मेहता on May 12, 2016 at 7:11am
आ. नादिर खान जी, आ. सौरभ जी, आ. मिथिलेश जी, आप सब का बहुत आभारी हूँ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 3, 2016 at 4:34pm

आदरणीय जयनित भाई, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. आदरणीय निलेश जी, शानदार इस्लाह के लिए आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2016 at 8:03pm

आपकी इस ग़ज़ल पर हुई चर्चा ! वाह वाह वाह !

हार्दिक शुभकामनाएँ भाई.. 

Comment by नादिर ख़ान on May 2, 2016 at 5:34pm

उत्तम रचना सार्थक चर्चा वाह भाई वाह .. ऐसी  ज्ञान की बातें और कहाँ

Comment by जयनित कुमार मेहता on May 2, 2016 at 7:27am
आदरणीय समर कबीर साहेब, बहुत बहुत धन्यवादी हूँ आपका।
मूल ग़ज़ल में आपके कथनानुसार संशोधन कर लिया है।
सादर!!
Comment by Samar kabeer on May 1, 2016 at 2:35pm
जनाब जयनित कुमार जी आदाब,ग़ज़ल अच्छी हुई बधाई स्वीकार करें ।

जनाब निलेश जी ने सारी बातें कह भी दीं और विस्तार से समझा भी दीं, इसके लिये वो बधाई के हक़दार हैं ।
मतले के ऊला मिसरे में "रख"शब्द मज़ा नहीं दे रहा,इसे इस तरह करलें तो कैसा रहे :-
"नेक नीयत रह के आख़िर क्या मिला"
बाक़ी शुभ शुभ ।
Comment by जयनित कुमार मेहता on May 1, 2016 at 1:17pm
जी अच्छा!
इस चर्चा के लिए बहुत-बहुत आभारी हूँ आपका।
सादर!!
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 1, 2016 at 1:14pm

खैरख्वाह का अंतिम ह साइलेंट है खैरख्वा पढ़ा जाएगा अत: दोनों सूरत में मिसरा सही होगा 

Comment by जयनित कुमार मेहता on May 1, 2016 at 1:05pm
किस को दुश्मन,खैरख्वाह किस को कहूँ
हर कोई क़ातिल से मेरे जा मिला

आपने इस मिसरे में "खैरख्वाह" का प्रयोग जिस जगह पर किया है, क्या उससे बह्र प्रभावित नहीं हो रहा है?

क्या इसको ऐसे नहीं कह सकते-

किस को दुश्मन,किस को समझूँ खैरख्वाह
हर कोई क़ातिल से मेरे जा मिला

अंत में "ह" साइलेंट हो गया।
बताएँ!
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 1, 2016 at 1:00pm

कौन दुश्मन करने से एक है या था की आवश्यकता होगी 
किसको दुश्मन ..कहने से आगे वाला समझूँ दुश्मन और खैरख्वाह ..दोनों के लिए पूरा रहेगा ..
सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service