For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आहों को हम रख लेते हैं...गीत//डॉ. प्राची

तुमको बहुत मुबारक मंज़िल, राहों को हम रख लेते हैं।
खुशियों की सौगातें तुम लो, आहों को हम रख लेते हैं।

कसमें वादे तोड़ चले तुम,
हमको तन्हा छोड़ चले तुम,
जोड़ी थीं जो राहें तुमने
उनको खुद ही मोड़ चले तुम,
तूफ़ाँ देख मुङो तुम, पर मझधारों को हम रख लेते है....

हर इक रंग तुम्हीं से लेकर
सतरंगी थे ख्वाब सँवारे,
तुम क्या बिछुड़े,अब तो अपने
साथी हैं केवल अँधियारे
सुबह सुनहरी तुम ही रख लो, रातों को हम रख लेते हैं....

गीली मेहँदी, महके गज़रों
से बहका करती थीं रातें,
तुम बिन हर सुर भूली पायल
बेसुर हैं कंगन की बातें,
यादों की खुशबू में भीगी साँसों को हम रख लेते हैं....

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 640

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 13, 2016 at 1:01am
~Prachi

आ. मिथिलेश वामनकर जी, आ.सौरभ जी
सादर प्रणाम
राहों आहों के तुकांत कम मिलने के कारण ही ये समझौता किया था....
हर बंद की अंतिम पंक्ति को क्रमशः इस प्रकार बदलने की कोशिश की है...
लहरों का नर्तन तुम रख लो, थाहों को हम रख लेते हैं....
सुबह सुनहरी तुम लो, काली डाहों को हम रख लेते हैं....
यादों के अश्कों में सीली बाहों को हम रख लेते हैं....
कृपया अब पुनः देखकर सुझाइये,कोई और परिवर्तन अपेक्षित हो तो
सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 4, 2016 at 3:57pm

आदरणीया प्राचीजी, भाव विह्वल करते इस गीत पर क्या कहूँ ? बस मुग्ध हूँ. पंक्तियों के माध्यम से जो निवेदन हुआ हैम् वह इस तन्मयता से हुआ है कि विरह की दशा के मुखर प्राकट्य की अनुभूति हो रही है.
एक-एक पंक्ति तीर की तरह आती है.

हर इक रंग तुम्हीं से लेकर
सतरंगी थे ख्वाब सँवारे,
तुम क्या बिछुड़े,अब तो अपने
साथी हैं केवल अँधियारे
सुबह सुनहरी तुम ही रख लो, रातों को हम रख लेते हैं....

वाह वाह !

अलबत्ता, आदरणीय मिथिलेश जी ने विधाजन्य जो प्रश्न उठाये हैं उनकी ओर ध्यान देना समीचीन होगा. 

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 26, 2016 at 11:23pm

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी, बहुत प्यारा गीत लिखा है आपने. हार्दिक बधाई. मुखड़े में राहों और आहों की तुकांतता देख अंतरों की टेक से पहले बाँहों, चाहों, फाहों, पनाहों जैसी तुकांतता खोजने को तत्पर हो गया किन्तु बाद में समझ आया आपने स्वर आधारित तुक लिया है. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 26, 2016 at 9:17pm

बहुत प्यारा गीत लिखा है प्रिय प्राची जी हार्दिक बधाई 

Comment by Shyam Narain Verma on April 26, 2016 at 2:36pm
बहुत ही सुंदर गीत हार्दिक बधाई ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 25, 2016 at 4:30pm
यादों की खुशबू में भीगी साँसों को हम रख लेते हैं....
ati sundar
Comment by Sushil Sarna on April 25, 2016 at 3:57pm

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी बहुत ही गहन भावों को समेटे आपके इस की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। बहरहाल इस प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें। 

Comment by Ravi Shukla on April 25, 2016 at 1:29pm

आदरणीया प्राची जी  सुन्‍दर गीत के लिये बधाई स्‍वीकार करें 

सुन्‍दर गीत रचा है निश्चित 

सजे हुए है शिल्‍प सुहाने 

कलम आपकी सक्षम है पर 

दर्शन बिम्‍ब प्रतीक पुराने 

शब्‍द यहींं पर वापस धर के  भावों को हम रख लेते है 

Comment by Samar kabeer on April 25, 2016 at 12:27pm
मोहतरमा डॉ.प्राची साहिबा आदाब,इस सुंदर रचना के लिये बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहा सप्तक. . . . . मित्र जग में सच्चे मित्र की, नहीं रही पहचान ।कदम -कदम विश्वास का ,होता है…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"गीत••••• आया मौसम दोस्ती का ! वसंत ने आह्वान किया तो प्रकृति ने श्रृंगार…"
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आया मौसम दोस्ती का होती है ज्यों दिवाली पर  श्री राम जी के आने की खुशी में  घरों की…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service