For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चाहत की रस्म हमने निभाई कुछ इस तरह...ग़ज़ल// प्राची

2212,121,122,1212

पल में हुई मैं खुद से पराई कुछ इस तरह
थामी उन्होंने हाय! कलाई कुछ इस तरह

नस-नस में सिहरने हैं, निगाहों में है सुरूर
साँसों में उनकी याद समाई कुछ इस तरह

हम कँपकँपा के रह गए और वो समझ गए
खामोशियों ने बात बताई कुछ इस तरह

ओढ़े जब उनके रंग तो तन-मन महक उठे
मेहँदी में उनकी प्रीत सजाई कुछ इस तरह

आँखों में उनकी अक्स बस अपना हमें दिखा
उनसे चुरा के आँख मिलाई कुछ इस तरह

बातें सतह पे और मगर अर्थ और थे
दो पल घड़ी मिलन की बिताई कुछ इस तरह

हाथों में ले के हाथ, हथेली को चूम कर
अपनी ख़ुशी उन्होंने जताई कुछ इस तरह

हम रात भर जले वो पिघलते चले गए
चाहत की रस्म हमने निभाई कुछ इस तरह

मौलिक और अप्रकाशित 

Views: 635

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on April 24, 2016 at 3:50pm

बहुत ही खूबसूरत गज़ल के लिए बहुत सारी बधाई। 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 24, 2016 at 2:10pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीया प्राची जी, दाद कुबूल करे।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 24, 2016 at 10:59am

आदरणीया प्राची जी ..रूमानियत से भरी इस रचना से आपके वैबिध्य से भरे लेखन की एक और झलक मिली ..आदरणीय डॉ गोपाल सर ने आपके स्वास्थ्य के सम्बन्ध में लिखा   मैं भी इश्वर से शीघ्रती शीघ्र आपके स्वास्थ्य लाभ की दुआ करते हुए आपको इस शानदार रचना  के लिए हार्दिक बधाई देता हूँ /सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 22, 2016 at 8:10pm

बहुत बढ़िया  आदरणीया . शरदिंदु दादा से आपकी बीमारी का हाल सुनकर दुःख हुआ. ईश्वर आपको शीघ्र आरोग्य करे . सादर . 

Comment by narendrasinh chauhan on April 21, 2016 at 5:24pm

लाजवाब रचना

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
1 hour ago
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
20 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service