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अतुकांत-तुम तो न जानते थे न महात्मन्!

हे महात्मन्!
हे वयोवृद्ध!
तेरी मृतात्मा सुने!
राम-गौतम की इस भूमि पर
अब वटवृक्ष छोड़,
उसकी टहनियों को
पूजा जायेगा।
तूने जो किये थे,
निः स्वार्थ कृत्य,
कर विस्मृत उन्हें,
बस तेरी कमियों को ही
उकेरा जायेगा।
इस सत्य-भूमि पर,
सत्यता को झुठलाकर
इतिहास को ही
तोड़ा मरोड़ा जायेगा,
तेरी रीतियों-नीतियों की
प्रबुद्ध आवाज को
अब अहिंसात्मक असहिष्णुता
बोला जायेगा।
जिन घटितों का तुझसे
दूर तक रिश्ता नही,
उनको भी
तेरी कमियों से
जोड़ा जायेगा,
जन-जन में बसी थी
सत्याग्रह की जो सुघर छवि,
उसमें भी,
विष-कालिमा को
घोला जायेगा,
नेतृत्व का औचित्य ही क्या था?
जब कमी न थी सेनानियों की
क्या मिला तुझको ?
यही?
कि तेरे दिवसों पर ही
तुझको
प्रश्नों से घेरा जायेगा?
मनुष्य ही था न!
विधाता तो नही
कर्तव्यों परवाह क्यों थी तुझे?
छोड़ देता इनके हाल पर
अब देख ले!
कि तेरे घावों को
तीखे नस्तरों से
कुरेदा जाएगा।
तुम तो न जानते थे न महात्मन्!

रचनाकार-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by रामबली गुप्ता on April 20, 2016 at 11:46am
रचना पर प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार आदरणीय सुशील सरना जी।
Comment by Sushil Sarna on April 14, 2016 at 3:03pm

वाह आदरणीय रामबली गुप्ता ही दार्शनिक्ता का पुट लिए बहुत ही सुंदर और प्रवाहमयी प्रस्तुति हुई है। इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें। 

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