For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बताए राज रावण के सभी वो राम को चाहे - ग़ज़ल - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

1222    1222    1222    1222

उछल कर केंचुए तल से कभी ऊपर नहीं होते
कि दादुर  कूप के यारो  कभी बाहर नहीं होते ।1

समर्थन पाक  को हासिल हमारे बीच से वरना
कभी  कश्मीर पर  इतने कड़े  तेवर नहीं होते।2

पढ़ाते तुम न जो उनको कि भाई भी फिरंगी है
कभी  मासूम हाथो  में लिए  पत्थर  नहीं होते।3

बँटे हम तुम न होते गर यहाँ मजहब विचारों में
कभी जयचंद जाफर  तब छिपे भीतर नहीं होते।4

समझ थोड़ा अगर रखती हमारे देश की जनता
हमेशा  इस सियासत में  भरे जोकर नहीं होते।5

बताए राज रावण  के सभी वो राम को  चाहे
विभीषण देश के यारो  कभी जेवर  नहीं होते।6

मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर ' 

Views: 871

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 7, 2016 at 11:58am

आ0 भाई विजय जी आपका सानिन्ध्य पा गजल सम्मानित हुई । उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद । मार्ग दर्शन करते रहिए । 

Comment by vijay nikore on April 6, 2016 at 12:59pm

 खूबसूरत गज़ल के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 6, 2016 at 10:57am

आ० अमिता जी ग़ज़ल की प्रशंसा  कर  उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 6, 2016 at 10:55am

आ० भाई गुमनाम जी इस स्नेह के लिए आभार .

Comment by amita tiwari on April 6, 2016 at 1:28am

ग़ज़ल का हर शेर ....... हार्दिक बधाई

Comment by gumnaam pithoragarhi on April 5, 2016 at 7:17pm

वाह भाई जी वाह खूब ............ ग़ज़ल अच्छी लगी ........ बधाई ........

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 5, 2016 at 10:50am

आ0 भाई गोपालनारायण जी अपनी उपस्थिति से गजल का मान बढ़ाने और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 5, 2016 at 10:49am

आ0 राजेश दी आपसे प्रशंसा पा गजल का मान अत्यधिक बढ़ गया । इस स्नेह के लिए आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 5, 2016 at 10:48am

आ0 भाई आषुतोष जी, गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 5, 2016 at 10:31am

आ० धामी जी  बहुत सामयिक गजल कही आपने , सादर. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service