For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

" पापा मुझे कुछ रूपये चाहिए " ड्यूटी पर निकलने को तैयार भँवरलाल , बेटे की आवाज पर चौंक उठे ।
" कितने बार कहा , ड्यूटी पर जाते वक्त मत टोका करो , अभी तो दिये थे पिछले हफ्ते दस हजार ,उसका क्या हुआ ? "
" दस हजार से होता क्या है पापा ! सारे खर्च हो गये " नजरें चुराते हुए उसने कहा ,तो भँवरलाल ठठा कर हँस पड़े ।
" बता कितना चाहिए ? " जेब में पर्स टटोलते हुए पूछा ।
" सिर्फ चालिस हजार "
" क्या ,इतने सारे रूपये ! कौन सा ऐसा काम आन पड़ा ? "
" उससे आपको मतलब नहीं , बस आपको देना ही है " पापा को उत्तर देने के बजाय ,वह अचानक गुर्रा उठा ।
" अच्छा ,अच्छा ,ठीक है ,नहीं पूछता , यह लो दस हजार , अभी इतने से ही काम चला लो ,बाकी के शाम को इंतजाम करके देता हूँ " कहकर वह बाहर आ , गाड़ी स्टार्ट कर विदा हुए । रास्ते भर रुपये की जुगत सोचते रहे । इकलौता जवान बेटा है । ऐश - ठाठ से रहे ,आखिर कमाता भी तो इसी के लिये हूँ , मन पितृत्व से आल्हादित हो उठा ।
सामने पान की गुमठी पर गाड़ी रोक लिया ।
" भीखू भाई , पान खिला जल्दी से , हरी - हरी ताजी पत्तियों वाला , बहुत तलब लगी है "
" अरे , थानेदार साहब , अभी धंधे का वक्त है , शाम को वसूली कर लेना ,तुम्हारी सारी तलब मिटा दूंगा , अभी जाओ , तुमको देखकर लौंडे लोग बिदक जायेंगे । "
" नशे का धंधा का भी कोई टाईम होता है भला ,तलबगार दिन - रात नहीं देखता है । चल निकाल, घर में जरूरत है । वादा करके आया हूँ । "
" तुम नहीं मानोगे , अच्छा ,ये लो साहिब "
" अरे , इतने कम से काम नहीं चलेगा आज , पूरा चालिस ही चाहिए "
" अपना धंधा अभी बाकी है साहब "
" मै नहीं जानता ,मुझे अभी चालिस के चालिस ही चाहिए "
" यह लीजिए और बख्स दीजिये मुझे , जल्दी जाईये ,मेरा ग्राहक आ रहा है । "
रूपयों को जेब में तसल्ली से ठूँस ,खुशी से गाड़ी स्टार्ट कर आगे बढ़ गये। सामने आईने में अपने मूंछों तो ताव देते हुए चेहरा देख रहे थे कि पीछे गुमठी पर किसी को देख , सशंकित हो वापस गाड़ी घुमाये ।
गुमठी पर नशे की पुड़िया हाथ में लिए , सौदेबाजी में लिप्त , सामने खड़ा एकलौते बेटे को देख , वह पसीने से तरबतर हो छटपटा उठे ।




(मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 615

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 9:58am

आपने  इस  लघुकथा  का  मूल  भाव  को  सही  तरह  से  पकड़ा  है आदरणीय सुनील  जी . ह्रदय  से  आभार  आपको 

Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 9:57am

आभार  आपको  आदरणीय  रामबली जी  तहेदिल 

Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 9:56am

आपके  द्वारा  कथा पर   प्रशंसात्मक प्रतिक्रया पाना  मन  को  हर्षोल्लास से  भर  जाता  है  आदरणीय समर  जी . आभार  आपको  

Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 9:54am

कथा पर मेरा प्रोत्साहन  करने  के  लिए  बहुत  -बहुत  आभार  आपको  आदरणीय  तेजवीर  जी  

Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 9:53am

आपको  कथा का  पसंद  आना  मेरे लिए  आज  का   लेखन सार्थक  हुआ आदरणीय पवन  जी  . आभार  आपको  ह्रदय  से  .

Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 9:51am

// यह तो हम सोचते हैं कि पैसा घूमता है , सच तो यह है कि पैसा तो सिर्फ एक पर्चा , एक माध्यम है , घूमता तो आदमी खुद है।
घुमाने वाला भी उसी के अंदर का आदमी है , पैसे की क्या औकात कि किसी को घुमा दे।// ------वाकई  में  ये  आपने  बहुत  बड़ी  बात  कही  है  आपने  आदरणीय  विजय  जी  तहेदिल  आभार  आपको  कथा  पर समीक्षात्मक  प्रतिक्रया   के  लिए . 

Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 9:49am

बिलकुल  सही कह रही  है  आप  आदरणीया  राहिला  जी  कि हराम  का  माल  से  किसी  की  उन्नति  नहीं  होती  है  . आपने  कथा के  मर्म   को  एकदम  सही  पकड़ा  है  . आभार  आपको  ह्रदय  से  

Comment by रामबली गुप्ता on March 17, 2016 at 1:33pm
अच्छी लघु कथा है।
Comment by Samar kabeer on March 16, 2016 at 6:07pm
मोहतरमा कांता रॉय जी आदाब,वाह बहुत ख़ूब,इस सुन्दरकथा के लिये बधाई स्वीकार करें ।
Comment by TEJ VEER SINGH on March 16, 2016 at 12:13pm

हार्दिक बधाई आदरणीय कांता जी!बेहतरीन प्रस्तुति!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
1 hour ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
1 hour ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday
PHOOL SINGH added a discussion to the group धार्मिक साहित्य
Thumbnail

महर्षि वाल्मीकि

महर्षि वाल्मीकिमहर्षि वाल्मीकि का जन्ममहर्षि वाल्मीकि के जन्म के बारे में बहुत भ्रांतियाँ मिलती है…See More
Apr 10
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी

२१२२ २१२२ग़मज़दा आँखों का पानीबोलता है बे-ज़बानीमार ही डालेगी हमकोआज उनकी सरगिरानीआपकी हर बात…See More
Apr 10

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service