For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इक उम्र जी जाती हूँ ....

इक उम्र जी जाती हूँ ....

उसके जाने के बाद मैं
कितनी बेख़बर सी हो गयी हूँ
नींदें सुहाती नहीं
यादें सुलाती नहीं
आईना बेगाना सा लगता है
अक्स भी अंजाना सा लगता है
लिबास बदलूं
तो किस के लिए
शाम-ओ-सहर उदासियों के
मंज़र कहर ढाते हैं
ज़िस्म पर लम्स के अहसास
कतरनों से सजे नज़र आते हैं
चलती हूँ तो न जाने
कितने लम्हे साथ चलते हैं
एक आहट के इंतज़ार में
काफिले अश्कों के पिघलते हैं
शब् तो अब भी होती है मगर
अब हर करवट तन्हा सी होती है
अब बिस्तर पे
कोेई सलवट भी नहीं होती
अब तकियों पे
सावन के निशान होते हैं
अश्क यादों के पासबान होते हैं
बंद पलकों के दरीचों में
वो रूठे ख़्वाबों से चले आते हैं
मैं लाख न नुकर करती हूँ
वो हौले से मुझे सहलाते हैं
मैं तन्हाई के कफ़स में
आखिर टूट जाती हूँ
फ़रेब ही सही मगर
इक लम्हे में मैं
इक उम्र जी जाती हूँ


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 559

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on March 11, 2016 at 1:05pm

आ. Dr Ashutosh Mishra जी प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on March 11, 2016 at 1:04pm

आ.  रामबली गुप्ता जी प्रस्तुति में निहित भावों को स्वीकृति देती आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 11, 2016 at 10:05am

दिल को छू लेने वाली इस रचना के लिए हादिक बधाई आदरणीय सरना जी 

Comment by रामबली गुप्ता on March 10, 2016 at 11:12pm
एक-एक शब्द में भावों की गहराई लिए इस सुंदर हृदयस्पर्शी रचना के लिए तहे दिल से बधाई कुबूल फरमाएं आदरणीय सुशील सरना जी, वाह वाह बहुत खूब
Comment by Sushil Sarna on March 9, 2016 at 9:10pm

आ.  Kewal Prasad जी प्रस्तुति में निहित भावों को स्वीकृति देती आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 9, 2016 at 8:57pm

आ० सरना भाई  जी,   अतीव सुंदर एवं गहन भावों से सिक्त कविता को नमन. हार्दिक बधाई . सादर

Comment by Sushil Sarna on March 9, 2016 at 7:51pm

आ. ram shiromani pathak जी प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार। 

Comment by ram shiromani pathak on March 9, 2016 at 6:01pm
सुन्दर भावाभिव्यक्ति।।बधाई
Comment by Sushil Sarna on March 9, 2016 at 2:18pm

आ. राहिला जी प्रस्तुति में निहित भावों को स्वीकृति देती आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on March 9, 2016 at 2:17pm

आ.लक्ष्मण धामी जी प्रस्तुति पर आपके स्नेह का दिल से आभार। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
21 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
21 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
22 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
23 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service