For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

विद्रोहिणी सी बन गयी थी मैं

मेरी कुंठा और संत्रास 

कैसे पनपे

नहीं जान पाई मै

और कितना असत्य था

उनका दुराग्रह   

यह तब मैं न जानती थी

सच पूछो तो

नहीं चाह्ती थी जानना भी

कोई समझाता यदि

तो आग लग जाती वपुष में

अरि सा लगता वह

पर कोई देता यदि प्रोत्साहन

मुझे उस गलत दिशा में जाने का

तो वह लगता सगा सा

हितैषी और शुभेच्छु

संसार का सबसे प्रिय जीव  

क्योंकि तब थी मैं  

उसके प्यार में पागल  

समझाकर हार गए पिता 

माँ सिर्फ रोती  या फिर कोसती

मुझे अपने कोख में रखने को   

परिवार मे भाई और रिश्ते में मामा

बहन के विलाप से खिन्न

सभी घर के रहस्यवेत्ता मेरे भावों से अनभिज्ञ 

प्रत्यक्षतः मेरे निर्णय के विरुद्ध  

केवल फूफा ने ली मेरी भावना की सुधि

किया मेरे प्यार का समर्थन

और पिता भी डरते थे उनसे

या करते थे उनका अतीव सम्मान

कभी न की थी उनकी अवहेलना

वही मेरे मामले में रंच भी डिगे नहीं   

नहीं सुनी एक भी उन्होंने तब फूफा की

स्पष्ट कह दिया –

‘यह जाना चाहती है यदि उसके साथ

तो बेशक चली जाए मैं नहीं रोकूंगा

पर फिर यह दरवाजे बंद हो जायेंगे

सदा के लिए

वापस नहीं आ पायेगी फिर किसी तौर भी’

मैं तथाकथित विद्रोहिणी

पिता से हार गयी

नहीं उठा पायी मैं वह साहसिक कदम

उसने भी रचकर व्याह किसी और कन्या से

तोड़ दिया मेरा भ्रम    

उसी पाषाण पिता ने

उस तय हुए रिश्ते को फिर तोड़ा मेरे लिए

जिसे मैंने मना किया

एक राहत माँगी मैंने पिता ने दिया  

ह्रदय पर पत्थर रख तयशुदा रिश्ते को

ठुकराया पापा ने  

फिर वे

कहाँ-कहाँ नहीं भटके

कितनी जिल्लतें नहीं उठाई

पर नहीं किया कोई भी समझौता ऐसा-वैसा

जनक ने मेरे लिए

आज एक बेटी की माँ हूँ मैं भी  

प्यारा छोटा घर है, वे हैं, मैं हूँ

खुश हूँ , प्रसन्न हूँ

आज सोचती हूँ कितनी नादान थी

उन बीते दिनों में

कितनी मार्गच्युत कितनी पथ भ्रष्ट

कितनी आवारा कितनी पागल

यदि दृढ नही होते पिता चट्टानवत  

तो शायद कर बैठती मैं भी वही गलती

जो अक्सर कर बैठती है लड़कियां

अपनी जवानी मे जब नहीं होती

कुछ भी तमीज जीवन की, जग की

केवल होता है एक मधुर सपना

मायावी मरीचिका

प्यार का अन्धा-नशा 

अपरिपक्व मन की दुर्निवार जिद 

आज काप उठती हूँ सोचकर यह

कल बड़ी होगी मेरी भी बेटी

उस पर भी होगा सवार

वैसा ही पागलपन

तब क्या

मैं दृढ हो पाउंगी अपने पिता की तरह

या सिर्फ टेसुये  बहांऊँगी माँ की तरह्

या फिर भरोसा करूंगी अपने पति पर 

उनके पाषाण होने तक
(मौलिक व् अप्रकाशित)

Views: 337

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ram shiromani pathak on March 9, 2016 at 6:25pm
बधाई आदरणीय।।सादर
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 9, 2016 at 11:34am

आ० भाई डॉ गोपाल नरायन जी , इस उत्तम और  हृदयस्पर्शी प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई l

Comment by Sushil Sarna on March 8, 2016 at 5:54pm

कल बड़ी होगी मेरी भी बेटी
उस पर भी होगा सवार
वैसा ही पागलपन
तब क्या
मैं दृढ हो पाउंगी अपने पिता की तरह
या सिर्फ टेसुये बहांऊँगी माँ की तरह्
या फिर भरोसा करूंगी अपने पति पर
उनके पाषाण होने तक

.... वाह आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी वाह महिला दिवस पर इस उत्तम कृति क्या हो सकती है। शीर्षक को सार्थिक करती, और पाठक को सोचने पर मजबूर करती इस हृदयस्पर्शी प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई सर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
12 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service