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पदोन्नति - ( लघुकथा ) –

पदोन्नति -  ( लघुकथा )  –

"डॉ साहब, बाबूजी ठीक तो हो जायेंगे ना"!

"देखिये कुमार बाबू, ऐसे तो इन्हें कोई गंभीर बीमारी नहीं है मगर इनका मानसिक संतुलन बडी जल्दी जल्दी बिगडता है,उससे ब्लड प्रैसर तेज़ी से  बढ जाता है! इससे लक़वा होने की संभावना रहती है!यदि इसमें सुधार नहीं हुआ तो मानसिक रुग्णालय भेजना पडेगा"!

"आपका मतलब पागलखाने"!

"जी हॉ, वैसे इनको यह दौरे कब से आते हैं"!

"बाबूजी सरकारी विभाग में अधीक्षक थे!बहुत मेहनत और ईमानदारी से कार्य करते थे!समय के पाबंद थे!एक पैसा भी बेईमानी का लेना हराम था!शैक्षणिक योग्यता भी पूर्ण थी, इसके बाबज़ूद उनकी पदोन्नति नहीं हुई!उनसे कनिष्ठ और अयोग्य लोग पदोन्नति  पा गये थे!जब तक नौकरी में थे तो एक आशा थी कि शायद अब मिल जायेगी पदोन्नति! रिटायर होने के बाद वह उम्मीद भी खत्म हो गयी!तभी से यह दौरे शुरु हुए"!

"मगर आपके बाबूजी को पदोन्नति नहीं मिलने के पीछे मुख्य कारण क्या था"!

"डॉ साहब,सब योग्यतायें होने के बाबज़ूद बाबूजी को पदोन्नति ना मिलने के पीछे एक ही कारण था, जो वह नहीं पूरा कर पाते थे"!

"वह क्या था"!

"जी हुज़ूरी"!

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on March 3, 2016 at 11:44am

हार्दिक आभार आदरणीय नीता कसार जी!

Comment by Nita Kasar on February 20, 2016 at 2:39pm
संवेदनशील लोग क्या करें जी हुज़ूराबाद उनके वश की नही बर्दाश्त कर पाना उनके बूते की बात नही ।सार्थक कथा के लिये बधाई आद०तेजवीर सिंह जी ।
Comment by TEJ VEER SINGH on February 19, 2016 at 8:15pm

हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी!

Comment by TEJ VEER SINGH on February 19, 2016 at 8:14pm

हार्दिक आभार आदरणीय सुशील सरना जी!

Comment by TEJ VEER SINGH on February 19, 2016 at 8:13pm

हार्दिक आभार आदरणीय पवन जैन जी!

Comment by TEJ VEER SINGH on February 19, 2016 at 8:11pm

हार्दिक आभार आदरणीय राहिला जी!

Comment by Rahila on February 18, 2016 at 1:32pm
बहुत अच्छी रचना आदरणीय तेजवीर सर जी! बहुत बधाई । सादर
Comment by Pawan Jain on February 17, 2016 at 8:50pm

जी हजूरी भी एक योग्यता है,पदोन्नति के लिये ।सब के पास नहीं होती यह कला ।और कनिष्ठ बैठ जाते हैं सिर पर ।बाखूबी चित्रित किया है।बधाई आदरणीय।

Comment by Sushil Sarna on February 17, 2016 at 8:18pm

वाह आदरणीय तेज वीर सिंह जी जो कुछ आजकल हो रहा है उसे आपने बड़ी ही ख़ूबसूरती से चित्रित किया है। आजकल तो हर मंजिल के लिए ''जी हजूरी'' का ब्रह्मास्त्र ही काम आता है। ईमानदारी अश्क बहाती है जी हजूरी मुस्कुराती है।  इस सुंदर लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई सर जी। 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 17, 2016 at 7:53pm
खुशामद का दस्तूर न निभाने से मानसिक प्रताड़ना कितनी असहनीय हो जाती है... यह संदेश बख़ूबी सम्प्रेषित करती रचना के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय तेज वीर सिंह जी।

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