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जब तक मै रहूंगा ‘आदम’ और तुम ‘ईव’

प्रिये,
सच तो ये है
जब तक मै रहूंगा ‘आदम’
और तुम ‘ईव’
तब तक हम खाते रहेंगे ‘सेब’
भोगते रहेंगे 'नर्क'
इससे तो बेहतर है
'मै' बन जाउं 'जंगल'
घना ओर बियाबान
तुम बहो उसमे
'नदी' सा हौले - हौले
या फिर मै
टंग जाउं आसमान मे
चॉद सा
और तुम बनो
मीठे पानी की झील
सांझ होते ही मै
उतर आउं जिसमे
चुपके से,
हिलूं। तैरूँ। इतराऊँ
सुबह होते ही फिर
टंग जाऊँ आसमान मे
या तो,
ऐसा करते हैं
मै बन जाता हूं 'आंगन'
जिसमे तुम उग आओ
तुलसी बन के
या कि ऐसा करो
तुम बनो धरती
मै,बन जाउं बादल
फिर तुझसे मिलने आऊं
सावन भादों मे
झम झमा झम झम

मुकेश इलाहाबादी ...

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by MUKESH SRIVASTAVA on February 2, 2016 at 12:26pm

bahut bahut shukriaa Hari Prakash Dubey jee is hauslaa aafzaee ke liye

Comment by Hari Prakash Dubey on February 2, 2016 at 2:17am

सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई आ. मुकेश जी ! सादर 

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on January 29, 2016 at 5:56pm

jee bahut bahtu aabhar rachna pasandgee ke liye mitra - taj veer sing jeeaur Satvinder jee

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 29, 2016 at 2:48pm
बहुत सुंदर मनोअभिव्यक्ति।आनन्द आ गया पढ़ते हुए।हार्दिक बधाई आदरणीय
Comment by TEJ VEER SINGH on January 29, 2016 at 1:37pm

हार्दिक बधाई आदरणीया मुकेश  जी!बहुत खूबसूरत प्रस्तुति!

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on January 29, 2016 at 1:30pm

jee - Shayad aapne sahee kahaa  - per bina SEB bhee to her insaan ke liye zarooree hai - thnx for liking the post


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 29, 2016 at 12:55pm
क्या ज़रूरी है आदम ईव बन सेब के फेर में सांसारिक दोलने में हिंडोले लेना जबकि इतने सारे खूबसूरत विकल्प मौज़ूद हों।
कल्पनाओं की इस उड़ान में सचमुच आनंद आया
इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई प्रेषित है आ0 मुकेश श्रीवास्तव जी

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