For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तेरा सिर्फ़ है आना बाक़ी--(ग़ज़ल)-- मिथिलेश वामनकर

2122—1122—1122—22

 

दिल तो है पास, तेरा सिर्फ़ है आना बाक़ी

और ये बात जमाने से छुपाना बाक़ी

 

ज़िंदगी इतनी-सी मुहलत की गुज़ारिश सुन लो

आखिरी क़िस्त है साँसों की चुकाना बाक़ी

 

फिर सियासत ने सभी दांव बराबर खेले

अब तो मज़हब की वही आग लगाना बाक़ी

 

फिर नई पौध को मारा है इसी जुमले ने-

“अब न वो लोग, न वैसा है ज़माना बाक़ी”

 

बस सियासत से है लबरेज अदब की दुनिया

अब न शायर का कोई ठौर ठिकाना बाक़ी

 

शहर पूरा ही सजाया है, ज़रा देर मगर

सिर्फ़ फुटपाथ से बिस्तर का हटाना बाक़ी

 

आज ख़्वाबों के सभी पंख कुतर देता पर

इस परिंदे को जरा सा है उड़ाना बाक़ी

 

दास्ताँ दर्द की हमने तो सुना दी लेकिन

अपनी आँखों से वही दर्द बताना बाक़ी

 

दे चुका हूँ मैं नसीहत का पिटारा लेकिन

सिर्फ़ बेटे को जरा आँख दिखाना बाक़ी

 

 

----------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित) © मिथिलेश वामनकर
----------------------------------------------------------

Views: 940

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 7, 2017 at 11:38pm

आदरणीय गोपाल सर, आपकी सराहना आश्वस्तकारी है. हार्दिक धन्यवाद. आभार. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 7, 2017 at 11:38pm

आदरणीय सलीम जी, सराहना हेतु हार्दिक आभार. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 7, 2017 at 11:36pm

आदरणीय गिरिराज सर, मार्गदर्शन एवं सराहना हेतु हार्दिक आभार. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 7, 2017 at 11:32pm

आदरणीय समर कबीर जी, आपके मार्गदर्शन अनुसार प्रयास करता हूँ सादर. सराहना हेतु आभार. सादर....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 7, 2017 at 11:29pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी,

आपको ग़ज़ल पसंद आई, जाकर आश्वस्त हुआ.

इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर.

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on March 7, 2016 at 11:28am

आदरणीय मिथलेश जी ,शानदार ग़ज़ल...इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई..

ब्लॉग का पेज भी आप ने बहुत सुन्दर सजाया है बहुत अच्छा लगा
भ्रमर ५

Comment by amita tiwari on March 7, 2016 at 1:57am

इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई  स्वीकारें. सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 29, 2016 at 3:52pm

बेहद खूबसूरत 

Comment by Ram Ashery on February 9, 2016 at 3:22pm

अति उत्तम रचना सहृदय बधाई स्वीकार हो 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 5, 2016 at 10:24am
बहुत अच्छे अश’आर हुए हैं आदरणीय मिथिलेश जी, दाद कुबूल करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 - 1212 - 22/112 देखता हूँ कि अब नया क्या है  सोचता हूँ कि मुद्द्'आ क्या…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है, मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाइये।…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदाब, मुसाफ़िर साहब, अच्छी ग़ज़ल हुई खूँ सने हाथ सोच त्यों बर्बर सभ्य मानव में फिर नया क्या है।३।…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय 'अमित' जी आदाब, उम्दा ग़ज़ल के साथ मुशायरा का आग़ाज़ करने के लिए दाद के साथ…"
1 hour ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"जी, ध्यान दिलाने का बहुत शुक्रिया। ग़ज़ल दोबारा पोस्ट कर दी है। "
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"नमन, रिया जी , खूबसूरत ग़ज़ल कही, आपने बधाई ! मतला भी खूसूरत हुआ । "मूसलाधार आज बारिश है…"
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आसमाँ को तू देखता क्या हैअपने हाथों में देख क्या क्या है /1 देख कर पत्थरों को हाथों मेंझूठ बोले वो…"
2 hours ago
Prem Chand Gupta replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"इश्क में दर्द के सिवा क्या है।रास्ता और दूसरा क्या है। मौन है बीच में हम दोनों के।इससे बढ़ कर कोई…"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Sanjay Shukla जी आदाब  ओ.बी.ओ के नियम अनुसार तरही मिसरे को मिलाकर  कम से कम 5 और…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"नमस्कार, आ. आदरणीय भाई अमित जी, मुशायरे का आगाज़, आपने बहुत खूबसूरत ग़ज़ल से किया, तहे दिल से इसके…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बेवफ़ाई ये मसअला क्या है रोज़ होता यही नया क्या है हादसे होते ज़िन्दगी गुज़री आदमी…"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"धरा पर का फ़ासला? वाक्य स्पष्ट नहीं हुआ "
3 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service