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भर्राती हुई सी आवाज़।कहाँ से आ रही थी?वह अंदाज़ा नहीं लगा पा रहा था।दर्द से पीड़ित सी।
दुखी सी।

"क्यों मुझे परेशान कर रही हो?"
हिम्मत सी करके बोला।

"परेशान?तुम्हें?और मैं?"
आवाज़ फिर आई।

"एक तो तुम्हारी आवाज़ मुझे डरा रही है और दूसरा तुम दिखाई भी नहीं देती।"
उसने ज़वाब दिया।

"मैं दिखाई नहीं देती?तुमने मुझे कभी दिखने ही नहीं दिया,हमेशा दबाने की कोशिश की और तुम कहते हो मैं दिखाई नहीं देती।"
आवाज़ में पीड़ा थी।

"मैंने तुम्हें दिखने नहीं दिया.......,दबाने की कोशिश की...?"
अँधेरे में गौर से आवाज़ की ओर ढूंढते हुए उसने पूछा।

"हाँ।बहुत बार अवसर मिले।मैं सबको दिख पाती।नज़र आती।चमकती।निखरती।परररर.....?"
आवाज़ में फ़िर पीड़ा थी।

घबरा रहा था।कोई नज़र नहीं आ रहा था।अब तो दम घुटने लगा था।
डर और घुटन से उपजी झल्लाहट से वह बोल उठा,"म्मम्मम्म मैं कुछ समझा.......कहाँ हो तुम मुझे नज़र नहीं आती ?बताती क्यों नहीं?"

"कहाँ ढूंढते हो मुझे?मैं तो तुम्हारे ही अंदर हूँ।"

"हाँ.....?"
डर गया।

"कौन हो तुम?"
डरते हुए पूछा।

"तुम्हारे अंदर की प्रतिभा।"
और एक ज़ोर दार ठहाका।

हड़बड़ाहट में हिला तो खुद को बिस्तर में पाया।

मौलिक एवम् अप्रकाशित

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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 20, 2016 at 9:06pm

आदरणीय सतविंदर जी, बिलकुल अलग अंदाज़ में लघुकथा कही है आपने. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

Comment by pratibha pande on January 20, 2016 at 12:16pm

 कुछ अ लग से ताने बाने में रची आपकी ये रचना अपने मर्म को संप्रेषित करने में सफल रही है ,बधाई स्वीकार करें आदरणीय सतविंदर जी 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 20, 2016 at 8:13am
हौंसलाफ़ज़ाई के लिए तहे दिल शुक्रिया ज़नाब समर कबीर साहबसाहब।
Comment by Samar kabeer on January 19, 2016 at 9:27pm
जनाब सतविंदर कुमार जी आदाब,बहतरीन प्रस्तुति के लिये दाद देता हूँ |
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 19, 2016 at 3:19pm
प्रोत्साहित करने के लिए सादर आभार आदरणीय तेजवीर जी।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 19, 2016 at 3:16pm
रचना पर पहली प्रोत्साहक टिप्पणी देने के लिए हृदयतल से आभार आदरणीय शेख साहब।
Comment by TEJ VEER SINGH on January 19, 2016 at 1:08pm

हार्दिक बधाई अदरणीय सतविंदर जी!बेहतरीन प्रस्तुति!

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 19, 2016 at 12:57pm
इनकी, उनकी, तेरी-मेरी, कईयों का गहरा दर्द समेटे अंतर्मन की आवाज़ , तड़पती प्रतिभा की प्रतिक्रिया को शाब्दिक करती बहुत ही सुंदर संदेश वाहक प्रस्तुति के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय सतविंदर कुमार जी।

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