For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

टूटे हुए मकान का सामान बन गये (तरही ग़ज़ल 'राज ')

221  2121   1221   212

अपने लहू से आज वो अन्जान बन गये

टूटे हुए मकान का सामान बन गये

 

ज़ज्बात से किसी को यहाँ वास्ता नहीं

ड्राइंग रूम में रखा दीवान बन गये 

 

बेगानों की तरह रहे अपने ही देश में

बस चार पाँच दिन के ही मेह्मान बन गये

 

अपने ही घर में किश्तियाँ महफूज़ हैं कहाँ

साहिल के आस पास ही तूफ़ान बन गये

 

छोड़ी कसर न देखिये कुदरत को लूटकर

आफ़ात आ पड़ी तो अब इंसान बन गये

 

करतूत वो करें किसी शैतान की तरह

क़ानून की निगाह में नादान  बन गये

 

भगवान बनते फिरते हैं दिन के उजाले में

खुर्शीद ज्यों ही ढल गया शैतान बन गये

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 739

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 29, 2015 at 12:29pm

आ० दीदी - बहुत बढ़िया 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 28, 2015 at 8:57pm
वाह्ह्ह्ह्!बेहतरीन ग़ज़ल हुई है।बधाई आदरणीया राजेश जी।
Comment by gumnaam pithoragarhi on December 28, 2015 at 8:49pm

वाह बहुत खूब ग़ज़ल हुई है badhai,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

Comment by Neeraj Neer on December 28, 2015 at 8:38pm

वाह शानदार गजल /


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 28, 2015 at 6:29pm

आ० समर भाई जी आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत- बहुत शुक्रिया|आपकी बात सही है आफ़ात बहुत वचन में ही लिखना चाहा है बल्कि शब्द इधर उधर हो गए पोस्ट करते वक़्त ---आफ़ात आ पड़ीं हैं तो इंसान बन गए ..मूल रचना में शब्द ये थे  पोस्ट करते वक़्त ये गड़बड़ी हुई है |

अपने ही घर में किश्तियाँ महफूज़ हैं कहाँ----आप जो कहना चाह  रहे हैं वो मैं समझ गई हूँ इसमें भाव गलत हो रहा है हालांकि आज की इस सच्चाई को भी नकार नहीं सकते किन्तु कुछ अपवाद को लेकर इतनी बड़ी बात लिखना ठीक नहीं आपने सही सुझाया जिसकी मैं बेहद शुक्रगुजार हूँ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 28, 2015 at 6:22pm

मनन कुमार जी बहुत- बहुत शुक्रिया चौथे शेर में सानी में बह्र की कोई गड़बड़ नहीं है बल्कि ये मिसरा तो तरही  मिसरा है |रही बात आफ़ात को मैंने बहु वचन में ही लिया था हाँ पोस्ट करते वक़्त ही गड़बड़ हो गई है जैसे मैंने लिखा था ---आफ़ात आ पडी हैं तो इंसान बन गये ...कुदरती आफ़ात एक ही नहीं होती बाढ़ ,भूकंप ,सूखा इत्यादि बहुत सी हैं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 28, 2015 at 6:17pm

जयनित कुमार जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से बहुत- बहुत शुक्रिया | 

Comment by Samar kabeer on December 28, 2015 at 5:52pm
बहना आदाब,बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें,चोथे शैर का ऊला मिसरे में किश्ती के साथ घर मुनासिब नहीं,"दरया में अपनी कश्तियां महफूज़ हैं कहाँ"इसीतरह पांचवें शैर में"आफ़ात"बहु वचन है "आफत जो आ पड़ी तो अब इंसान बन गये "देख लीजियेगा
Comment by Manan Kumar singh on December 28, 2015 at 5:38pm
अच्छी गजल कही आपने आदरणीया;चौथे शेर के मिसरा-ए-सानी में बहर-बाधा प्रतीत हो रही है एवं पाँचवे शेर में यथास्थान किंचित आफ़त हो,सादर।
Comment by जयनित कुमार मेहता on December 28, 2015 at 2:08pm
आ. राजेश कुमारी जी, वर्तमान परिस्थिति का यथार्थ चित्रण करती इस ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद,एवं बधाई।।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर आ रे, सूरज आजमा, किसमें कितना जोर     मूरख…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी कोशिशों पर तो हम मुग्ध हैं, शिज्जू भाई ! आप नाहक ही छंदों से दूर रहा करते हैं.  किसको…"
6 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहा आधारित एक रचना: प्यास बुझाएँगे सदा सूरज दादा तुम तपो, चाहे जितना घोर, तुम चाहो तो तोड़ दो,…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, सदा की भाँति इस बार भी आपकी रचना गहन भाव और तार्किक कथ्य लिए हुए प्रस्तुत…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रदत्त चित्र को सार्थक दोहावली से आयोजन का शुभारम्भ हुआ है.  तन…"
7 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   पैसा है तो पीजिए, वरना रहो अधीर||...........वाह ! वाह ! लाख टके की बात कह दी है आपने.…"
8 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय शिज्जु शकूर जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर दोहे रचे हैं आपने. सच है यदि धूप न हो…"
8 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"    आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रस्तुत दोहों की सराहना के लिए आपका हृदय…"
8 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय अजय गुप्ता जी सादर, प्रस्तुत दोहों पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से आभार. आपकी…"
8 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  जी ! भाई लक्ष्मण धामी जी आप जो कह रहे हैं मन के मार्फ़त या दिल के मार्फ़त उस बात को मैं समझ…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्रानुसार उत्तम छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक  भाईजी  हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस सार्थक दोहावली के लिए| दोपहर और …"
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service