मानों कयामत बरपा हो गई। पूरा शहर लबालब भरा है।चारों ओर त्राही-त्राही मची हुई है। शिवानी प्रसव वेदना से तड़प रही है। शरद पैदल ही उसे अस्पताल ले जा रहा है
"अब बचना मुश्किल है।"कराहते हुए शिवानी बोली।
पानी गले-गले तक पहुँच गया।जीवन की आशा क्षीण हो चली है। एक अज़नबी तैरता हुआ करीब आया।
"मैं आप लोगों को सुरक्षित जगह पहुंचाने आया हूँ।"
उसकी मदद से शरद समय पर शिवानी को अस्पताल पहुंचाने में सफ़ल हो गया।
"शुक्रिया ! आज़ तुम न होते तो जाने क्या होता? "शरद ने कहा।
"ये तो मेरा फ़र्ज़ था।अब चलूँगा।"
" क्या मैं हमें बचाने वाले फ़रिश्ते का नाम जान सकता हूँ।"
"मीर अनवर , एम.बी.ए. कर रहा हूँ।"
"बधाई ! बिटिया हुई है।"नर्स आकर बोली।
भाग कर शरद ,शिवानी के पास पहुंचा और चाँद के टुकड़े को गले लगाकर बोला -
"शिवानी हम इसका नाम मायरा रखेंगें ।"
"मायरा ? ये तो मुस्लिम नाम है।आप लोग तो हिन्दू हो ना ?" नर्स बोली।
"ये हमारा इंसानियत को शुक्रिया कहने का तरीका है। अगर आज़ मीर अनवर न होता तो मायरा मेरी गोद में न होती।उसने हमें बचाते समय ये कहाँ सोचा कि वह मुसलमान को बचा रहा है या हिंदू को।"कह शरद ने प्यार से बिटिया को निहारा।
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
KOTI-KOTI NAMAN .
बहुत ही अच्छी संवेदनशील प्रस्तुति .
बहुत शानदार लघु कथा देर से आने का खेद है ...दिल से बधाई लीजिये जानकी जी .
इस अच्छी लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीया जानकी जी।
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