For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दुख देने को आये जो हालात, सुनो-- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

22---22---22---22---22---2

 

दुख देने को आये जो हालात, सुनो

अपना दिल भी पहले से तैनात सुनो

 

दे देना फिर तुम भी उत्तर, सुन लूँगा

लेकिन बेटा पहले पूरी बात सुनो

 

बाबुल के आँगन से आँसू कहते है

किस कारण से लौटी है बारात सुनो

 

एक सदी भी यारां कम पड़ जायेगी

चाहे तो तुम मेरे दुख दिन रात सुनो

 

फिर तो वो भी सारी बातें सुन लेंगे

उनसे अपनी पहले तो औकात सुनो

 

आज उजाले सूरज ने ही बेचे है

करते हैं सरगोशी ये जुल्मात, सुनो

 

नाहक ही न पत्थर है हर मुट्ठी में

शीशें वाले घर में थे वजूहात सुनो

 

सोचो तो ये कितना मुश्किल लगता है

खुद के सीने पर सिर रख जज्बात सुनो

 

 

 

------------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------------

Views: 960

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 26, 2015 at 11:44pm

कमाल !!  इस ग़ज़ल पर बस यही कह सकता हूँ, आदरणीय मिथिलेश भाई. 

दे देना फिर तुम भी उत्तर, सुन लूँगा

लेकिन बेटा पहले पूरी बात सुनो

अय-हय-हय ! क्या टकसाली टनकदार ज़ुबान है जी !  वाह !!

फिर, ’एक सदी’ क्यों ? कुछ ख़ास है इस ’सदी’ में ?  सदी को ’उम्र’ कर लेना क्या ग़लत होगा ? इसका कारण अब आपको क्या बताना, आदरणीय ? फिरभी,  जीवन भर सुनने का संकल्प ही तो किसी को सुनाने हेतु निवेदन कर सकत है ! और, ऐसी अदम्यता पर ही ऐसा कोई निवेदन मान्य हो पाता है. 

सोचो तो ये कितना मुश्किल लगता है

खुद के सीने पर सिर रख जज्बात सुनो

इस शेर केलिए कहाँ-कहाँ नहीं भटकना पड़ा होगा ! यह आपका अबतक का शेर हुआ है !!  बेशक़ीमती !!!

Comment by Ravi Shukla on November 26, 2015 at 1:39pm

आदरणीय मिथिलेश जी लेटेस्‍ट ब्‍लाग में '' दुख देने के लिये आये जो हालात '' पढ़ कर ये अंदाज नहीं था कि इस वाक्‍य के आगे एक से बढ़कर एक शेर मौजूद होगा । हर शेर के लिये दिली दाद कुबूल करें । और आखिरी शेर तो सच पूछिये उस इंसान के माद्दा ए बरदाश्‍त की तारीफ करनी पड़ेगी जो अपने ही सीने पर सर रख कर जज्‍बात को महसूस कर रहा हो । उफ ये तनहाई । आप क्‍या खूब कथ्‍य लेकर आए है । बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 25, 2015 at 7:59pm

बाबुल के आँगन से आँसू कहते है

किस कारण से लौटी है बारात सुनो

 

एक सदी भी यारां कम पड़ जायेगी

चाहे तो तुम मेरे दुख दिन रात सुनो ---वाह्ह्ह  वाह बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है मिथिलेश भैया ,दिल से बधाई लीजिये 

 

Comment by TEJ VEER SINGH on November 25, 2015 at 7:20pm

हार्दिक बधाई आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी!

एक सदी भी यारा कम पड जायेगी,चाहे तो तुम मेरे दुख दिन रात सुनो!

मज़ा आगया इस पंक्ति में!अंदर तक कोलाहल पैदा करने वाली रचना!पुनः बधाई!

Comment by Ajay Kumar Sharma on November 25, 2015 at 7:19pm

मिथलेश सर बेहतरीन गजल के लिए बधाई स्वीकार करें।


 

Comment by नादिर ख़ान on November 25, 2015 at 6:46pm

दे देना फिर तुम भी उत्तर, सुन लूँगा

लेकिन बेटा पहले पूरी बात सुनो

 

बाबुल के आँगन से आँसू कहते है

किस कारण से लौटी है बारात सुनो

आदरणीय मिथिलेश जी  बहुत ही  सार्थक गज़ल हुयी है  पूरी गज़ल उत्तम है मगर ये दो शेर विशेष रूप से पसंद आए बहुत बधाई आपको उतम रचना कर्म के लिए ....

 

Comment by amod shrivastav (bindouri) on November 25, 2015 at 8:05am
वाह खूब
Comment by मनोज अहसास on November 25, 2015 at 7:10am
नमस्कार सर
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है
बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 25, 2015 at 1:12am

आदरणीय गुमनाम सर जी, बहुत दिनों बाद आपकी दाद पाकर दिल खुश हो गया. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 25, 2015 at 1:11am

आदरणीय श्याम नरेन् जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
2 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
2 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
2 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service