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मौत के मुँह से (लघुकथा)

सोहन नर्मदा किनारे महिष्मति क्षेत्र में नर्मदा परिक्रमावासियो की लिए सदाव्रत प्रारम्भ करने जा रहा है। उसकी आँखों में वह दृश्य घूमने लगा। जल पीकर सीढ़ियों पर लेटे सोहन को बेहोशी छाने लगी। उस पार से आ रही एक नाव की सवारी ने उसे जगाया।

"भाई तू ब्राह्मण का बालक है ना ? यह अन्न दान लेI"

अपनी पहनी हुई धोती में वह अन्न लेकर सोहन मौत के मुँह से घर लौटा आया।
"आज घर में केवल दलिया शेष बची थी। तेरे पिता जी को जोरो से भूख लगी थी, सो मैंने खिला दी,बेटा|" स्कूल से लौटकर सोहन खाली डिब्बों को टटोल रहा था। माँ के निराश भरे स्वर को सुन,सोहन बोला:

"माँ ! मैं तो यह देख रहा हूँ क्या लाना है।"
एक मात्र कंडेक्ट्री के दम पर चल रहे घर के मुखिया का छः माह से यूँ बिस्तर पकड़ लेना। और कुल जमा बिमारी में खर्च हो जाना।
यह समय बोर्ड की परीक्षा दे रहे बेटे पर वज्रपात सा गिरा था। भूखा पेट, आँखों में आँसू लिये सोहन माँ के सामने से तो निकल आया। पर जाये तो कहाँ जाये। अंतर्द्वन्द नर्मदा किनारे ले आया। ऐसे जीने से तो मर जाना ठीक है। कमर तक जल में उतरकर एक खोंचा जल पिया। गहराई में प्रवेश करने ही वाला था कि माँ का ख्याल ! माँ का क्रंदन पांव की बेड़ी बन गया। वह बुदबुदाया: 

"यह दिन भी निकल जायेगे सोहन।"

.

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Vijay Joshi on November 20, 2015 at 6:23pm
आदरणीय सतविंदर जी,तेजवीर जी,बैजनाथ जी शर्मा जी सादर आभार जी।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 19, 2015 at 8:20pm
बेहद प्रेरणा दायक लघुकथा हुई।बधाई आदरणीय जोशी जी
Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 19, 2015 at 6:40pm

आदरणीय जोशी साहेब......... विचारणीय व हौसला देने वाली प्रस्तुति| बधाई |

Comment by TEJ VEER SINGH on November 19, 2015 at 10:33am

हार्दिक बधाई आदरणीय विजय जोशी जी!मार्मिक प्रस्तुति!

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