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खास रिश्ते का स्वप्न / लघुकथा

" ये क्या सुना मैने , तुम शादी तोड़ रही हो ? "

" सही सुना तुमने । मैने सोचा था कि ये शादी मुझे खुशी देगी । "

" हाँ ,देनी ही चाहिए थी ,तुमने घरवालों के मर्ज़ी के खिलाफ़ , अपने पसंद से जो की थी ! "

" उन दिनों हम एक दुसरे के लिए खास थे , लेकिन आज ....! "

" उन दिनों से ... ! , क्या मतलब है तुम्हारा , और आज क्या है ? "

" उनका सॉफ्स्टिकेटिड न होना ,  अर्थिनेस और सेंस ऑफ़ ह्यूमर भी बहुत खलता है।  आज हम दोनों एक दुसरे के लिये बेहद आम है । "

" ऐसा क्यों ? " उस व्याह की उमंग और उत्तेजनााकी इस परिणति से वह चकित थी ।

"क्योंकि , दो घंटे रोज वाली पार्क की दोस्ती , पति के रिश्ते में हर दिन औंधे- मुँह गिरता है । "

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 11:35pm

हृदयतल से आभार आपका आदरणीया प्रतिभा जी इतनी सुन्दर प्रतिक्रिया हेतु।

Comment by pratibha pande on October 22, 2015 at 11:12am

प्रेम विवाह में अक्सर ये होता  है किजिसको इतना जानते और मानते थे वो अचानक अजनबी हो जाता है ,  कथ्य और शिल्प दोनों कसावट लिए हैं , बधाई आपको इस रचना पर आदरणीया 

Comment by kanta roy on October 22, 2015 at 10:10am
रचनाएँ सफल तभी होती है जब सिद्धहस्त के हाथों सार्थक प्रतिक्रिया मिले , अन्यथा गुमराह होने के लिए बाहर हवा में मिलावट बहुत है । यही अंतर है किसी अन्य साईट और ओबीओ में । सादर
Comment by kanta roy on October 22, 2015 at 10:06am
लेखन संदर्भ में एक नये सिरे से चिंतन को मजबूर करती आपकी यह सार्थक मार्गदर्शन युक्त प्रतिक्रिया ही इस मंच के सार्थक होने को प्रमाणित करती है । आपकी ये चंद पंक्तियों में जो कि
// क्या लघुकथा किसी कहानी का एक अंश होती है ?//

//ख़ास क्या, जिसके लिए यह सृजन आकार लिया है. //
यही दो प्रश्न आपके द्वारा करना मेरे अगले सृजन को नयी दृष्टिकोण के तहत ही नया आयाम देने में साबित होगा । मै स्वीकार करती हूँ यहाँ कि इस लघुकथा में सर जी के अनुसार " कथ्य को समुचित तथ्य का कुशन प्राप्त ना हो सका । सादर नमन आपको आदरणीय बागी जी

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 22, 2015 at 8:39am

क्या लघुकथा किसी कहानी का एक अंश होती है ? नायिका प्रेम विवाह करती है और किसी कारण वश वह अलग होना चाहती है, यह प्रकरण विवाह के किसी भी विधि में हो सकता है, तो ख़ास क्या, जिसके लिए यह सृजन आकार लिया है. 

स्पष्ट कहूँ तो मुझतक यह लघुकथा नहीं पहुँच सकी, सादर.

Comment by kanta roy on October 21, 2015 at 11:14pm

आभार आपको आदरणीया राहिला जी कथा पर मेरा मनोबल बढ़ने के लिए। 

Comment by kanta roy on October 21, 2015 at 11:13pm

आभार आपको आदरणीय शिज्जू शकूर जी कथा पसंदगी के लिए। 

Comment by Rahila on October 21, 2015 at 8:53pm
बहुत बेहतरीन रचना आदरणीया कांता दी!आपकी ये रचना जहां हक़ीकत बयान करती है वहीं पनपते नये रिश्तों के खोखलेपन की पोल भी खोलती है । बहुत बधाई आपको ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 21, 2015 at 8:14pm
आदरणीया कांताजी एक स्वप्न को खूब हकीकत की ज़मीन दी है आपने वाह बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिये

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