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गीतिका
आधार छंद-मनोरम
मापनी 2122 2122
समांत-आत
पदांत-आओ
आ सुनो इक बात,आओ।
गुम हुई इक रात,आओ।
ढूँढता मैं आज तक हूँ,
यादों' की बारात,आओ।
सज गयी वह सेज कैसी!
तब के' सुन हालात,आओ।
वात ने दीपक बुझाया,
फिर हुई बरसात,आओ।
ओट घूँघट की रही थी,
काँपता तब गात,आओ।
चूमती फिर बूँद निर्भय,
मौन झंझावात,आओ।
झटके' में तब ओट छँटती,
झाँकता जलजात,आओ।
रे तुहिन कण से नहाया,
हो गया तन-पात,आओ।
गड़ रहा वह रूप पल-पल,
दृष्टि की सौगात,आओ।
दीप इच्छा के जले फिर
आस की तब बात,आओ।
चपला' चमकी,लाज लतिका
ढेर-सी फिर स्यात,आओ।
"मौलिक व अप्रकाशित"@मनन

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Comment

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Comment by Manan Kumar singh on October 28, 2015 at 8:16pm
आभार आपका राजेश कुमारी जी,देखते हैं क्या कर सकते हैं;बहुत बहुत शुक्रिया।

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Comment by rajesh kumari on October 26, 2015 at 10:27am

आ सुनो इक बात,आओ।---यहाँ शुरू में आ  और बाद में आओ  ठीक नहीं है शुरू में आ   के  स्थान पर  अब या कुछ  लिख सकते हो 

ढूँढता मैं आज तक हूँ,-----ढूँढता हूँ आज तक मैं   ...ठीक रहेगा 

बहुत सुन्दर प्रयास है मनन जी एक परामर्श देना चाहूंगी ...पदांत में आओ की जगह साथी लिखें तो ज्यादा बेहतर होगा क्यूँकि कुछ युग्म में आओ सटीक नहीं बैठ रहा जैसे ---ओट घूँघट की रही थी,
काँपता तब गात,आओ।---इसी तरह अन्य युग्म में आओ बेतुका लग रहा है जबकि साथी सब के साथ सूट करेगा 

बधाई आपको मनन जी 

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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