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लघुकथा - अनाथ

लघुकथा- अनाथ

पत्नी की रोजरोज की चिकचिक से परेशान हो कर महेश पिताजी को अनाथालय में छोड़ दरवाजे से बाहर तो आ गया, मगर मन नहीं माना. कहीं पिताजी का मन यहाँ लगेगा कि नहीं. यह जानने के लिए वह वापस अनाथालय में गया तो देखा कि पिताजी प्रबंधक से घुलमिल कर बातें कर रहे थे. जैसे वे बरसों से एकदूसरे को जानते हैं.

पिताजी के कमरे में जाते ही महेश ने पूछा, “ आप इन्हें जानते हैं ?” तो प्रबंधक ने कहा, “ जी मैं उन्हें अच्छी तरह जानता हूँ. वे पिछले ३५ साल से अनाथालय को दान दे रहे हैं . दूसरा बात यह है कि ३५ साल पहले जिस  बालक को वे इसी अनाथालय से गोद ले गए थे, वहीँ उन्हें यहाँ छोड़ गया.”

                                  ------------------------

१८/१०/२०१५ 

(मौलिक और अप्रकाशित )

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Comment by Omprakash Kshatriya on October 22, 2015 at 7:49am

आ  kanta roy  जी , कभीकभी  व्यक्ति अपने मनोभावों का दबा नहीं पाता है . जिस के  परिणाम स्वरुप लघुकथा में अनावश्यक पंक्तियाँ जुड़ जाती है. आप का कथन सही है. मगर लेखक न चाहते हुए भी लघुकथा में अपनी उपस्थिति दर्ज करा ही देता है. शायद यही कारण रहा हो की अंतिम पंक्तियाँ आ गई. सादर . आप का शुक्रिया इन अनमोल सुझाव के लिए. 

Comment by kanta roy on October 21, 2015 at 11:33pm

ये कथा हकीकत के बेहद करीब है। आज कल के हालत और वृद्धा आश्रमों की बढ़त एक बेहद ही गंभीर परिस्थिति है।

कथा बहुत खूब बनी है आदरणीय ओमप्रकाश जी ,लेकिन कथा की आखिरी पंक्ति पर मेरी नज़र जैसे फिर से ठहर गयी है की क्या इस पंक्ति का होना सही है ?
लघुकथा के लिए कहा गया है की सिर्फ हमें परिस्थितियों को ही कथा रूप में रखना है।
परिस्थितियों पर प्रतिक्रिया पात्र के माध्यम से लेखक नहीं पाठक देंगे। सादर नमन

Comment by Omprakash Kshatriya on October 21, 2015 at 10:25pm

आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आप का शुक्रिया .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 21, 2015 at 8:23pm
आदरणीय ओमप्रकाशजी सुंदर रचना है बधाई आपको
Comment by Omprakash Kshatriya on October 21, 2015 at 7:45pm

आदरणीय Sheikh Shahzad Usmani जी आप की समीक्षात्मक  टिपण्णी पढ़ कर अच्छा लगा. आभार आप की सहृदयता के लिए.

Comment by Omprakash Kshatriya on October 21, 2015 at 7:44pm

आदरणीय TEJ VEER SINGH जी आप को लघुकथा मर्मस्पर्शी लगी. आभार आप का तहेदिल से.

Comment by Omprakash Kshatriya on October 21, 2015 at 7:43pm

आदरणीया  kalpana bhatt जी आप को लघुकथा अच्छी लगी, पढ़ कर मेरी मेहनत सफल हो गई. अभार् आप का.

Comment by TEJ VEER SINGH on October 21, 2015 at 7:10pm

हार्दिक बधाई आदरणीय ओमप्रकाश जी!आपकी  लघुकथा हृदय को छू गयी!!बेहद मार्मिक प्रस्तुति! 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 21, 2015 at 6:00pm
आदरणीय ओम प्रकाश क्षत्रिय जी, बहुत ही उम्दा भाव पूर्ण रचना बढ़िया शैली में पढ़ कर दिल ख़ुश हो गया।तहे दिल बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ आपको।

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