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पाठ गीता का सुनाने के लिए आया नहीं

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122 2122 2122 212
==================================
मैं समस्यायें गिनानें के लिए आया नहीं।
धर्म नैतिकता सिखानें के लिए आया नहीं।।

सो रहे हैं आत्मा को बेचकर इंसान जो।
मत डरें उनको जगानें के लिए आया नहीं।।

जानता हूँ कल्कि युग की मान मर्यादा भी है।
नीतिगत बातें बतानें के लिए आया नहीं।।

तुम मगन अपनी लगन में ही रहो ओ साथियों।
राह में कंटक बिछाने के लिए आया नहीं।।

आचरण की सीख दूं, मुझको भला क्या गर्ज है।
कर्म के फल से डराने के लिए आया नहीं।।

भार कुछ सर पे तुम्हारे भी है मुझको ज्ञात है।
धर्म के पथ पर ले जानें के लिए आया नहीं।।

किसलिए आखिर भला मैं दूं दुहाई सृष्टि की।
मैं प्रलय का भय दिखानें के लिए आया नहीं।।

घोर लिप्सा लोभ के वश में सभी हैं क्या हुआ।
आवरण भ्रम का मिटानें के लिए आया नहीं।।

कर्म करिये फल की चिंता आप मुझ पर छोड़िये।
पाठ गीता का सुनानें के लिए आया नहीं।।

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 5, 2015 at 10:48pm
आदरणीय विजय शंकर सर
ग़ज़ल की सराहना के लिए आपको सादर आभार;
आपको सादर प्रणाम्।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on October 5, 2015 at 10:20pm

बहुत ख़ूब आ० भाई पंकज जी हार्दिक बधाई इस हिंदी गज़ल के लिए!

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 5, 2015 at 10:08pm
सो रहे हैं आत्मा को बेचकर इंसान जो।
मत डरें उनको जगानें के लिए आया नहीं।।
बहुत खूब, आदरणीय पंकज कुमार मिश्रा जी , बधाई , सादर।
Comment by Sushil Sarna on October 5, 2015 at 6:46pm

कर्म करिये फल की चिंता आप मुझ पर छोड़िये।
पाठ गीता का सुनानें के लिए आया नहीं।।
एक सार्थक संदेश देती बहुत सुंदर प्रस्तुति … हार्दिक बधाई आदरणीय।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 5, 2015 at 2:04pm
सादर अभिवादन आदरणीय राम अवध सर; शुरुवात "मैं" से ही है।।
सुझाव के लिए हार्दिक आभार।
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 4, 2015 at 7:49pm
आदरणीय मतला में शुरुआत शब्द "मैं" से करें तो मतला बह्र में आ जायेगा गजल अच्छी है बधाई।

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