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आसमां तक वही गया होगा (ग़ज़ल)

(2122  1212  22)

आसमां तक वही गया होगा..

हो के बेख़ौफ़ जो उड़ा होगा..

-

राह तू जब तलक निकालेगा,

सूर्य तब तक तो ढल चुका होगा..

-

साँच को आंच ना कभी आती,

ये भी तुम ने कहीं सुना होगा..

-

हम नज़र किस तरह मिलायेंगे,

जब कभी उन से सामना होगा..

-

राह ईमान की चुने ही क्यों,

कौन तुमसे बड़ा गधा होगा..

-

ठोकरें ना गिरा सकीं उस को,

शख़्स तूफां में वो पला होगा..

-

देख लो कर के प्यार का सौदा,

रात-दिन चौगुना नफ़ा होगा..

~

~

--जयनित--

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by जयनित कुमार मेहता on September 12, 2015 at 5:23am

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2015 at 10:40am

आदरणीय जयनित भाई , बहुत खूबसूरत गज़ल कही है , सभी अशआर  सुन्दर हुये हैं , आपको दिली बधाइयाँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 10, 2015 at 10:45pm
बहुत बढ़िया जयनित जी बधाई। और मैं आदरणीय राहुल जी की बात से सहमत हूँ
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 10, 2015 at 8:57am

हम नज़र किस तरह मिलायेंगे,
जब कभी उन से सामना होगा.

ठोकरें ना गिरा सकीं उस को,
शख़्स तूफां में वो पला होगा..

वाह! बेहतरीन...हार्दिक बधाई!

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 9, 2015 at 5:46pm

अच्छा प्रयास है आदरणीय जयनित जी, दाद कुबुलें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 9, 2015 at 5:20pm

बढ़िया प्रस्तुति, छोटी बह्र में बढ़िया शेर निकाले है आपने. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई 

Comment by Rahul Dangi Panchal on September 9, 2015 at 2:22pm
आदरणीय जयनित जी अच्छी गजल हुई ।

राह ईमान का चुने ही क्यों,
कौन तुमसे बड़ा गधा होगा। राह मेरे अनुसार स्त्रिलिंग है इसके साथ "का" उचित नहीं।

गजल में ' ना' का प्रयोग निषेध है । वास्तव में ना को ई शब्द ही नहीं है वास्तविक शब्द " न" है । पर ना भी खूब प्रचलित हो चुका है।

अच्छी गजल हेतु बधाई ।
Comment by Rahul Dangi Panchal on September 9, 2015 at 2:19pm
आदरणीय भाई जयनित जी अचछे शे'र हुए।

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