1212--- 1122---1212---22 |
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जरा खंरोच जो आई लगे सदा करने |
कलम जो धड़ से है, जाएँ कहाँ दवा करने |
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उसे भरम है अदालत से फैसला होगा |
मुआमले को लगे वो रफा-दफा करने |
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लहू से आज नहा के जो लौट आया है |
गया था शख्स शरीफों का घर पता करने |
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वो एक आस लगाए इधर उधर ताके |
शरीफ भीड़ लगी है खुदा-खुदा करने |
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हुआ है अब्र का भी हाल घर के नल जैसा |
जो पानी मांग लो लगता है ये हवा करने |
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हुई है बेटियां मसरूफ आज दफ्तर में |
घरों में माएं भी मसरूफ है दुआ करने |
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वो एक बार गरीबों का भाग दे लेते |
लगे जो दौलतों से दौलतें गुना करने |
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हुबाब, जिंदगी ‘मिथिलेश’ तिश्नगी, सपने |
ये खातमे के लिए है, नहीं जमा करने |
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Comment
आदरणीय श्याम नरेन् जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका. सादर
आदरणीय दिनेश भाई जी, आपका अनुमोदन पाकर आश्वस्त हुआ. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका. सादर
आदरणीय सुशील सरना सर, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका. सादर
आदरणीय रवि जी, आपने सही कहा इस बह्र में मैंने पहले एक या दो ग़ज़ल ही लिखी है, मुशायरे में इस बह्र के अभ्यास का प्रभाव है इस ग़ज़ल पर. ये भी सही है कि इस मंच के गुणीजनों से बहुत कुछ सीखने मिलता है और समर कबीर जी जैसे उस्ताद जब मंच पर उपलब्ध हो तो इसे अपनी किस्मत ही मानना चाहिये. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका. सादर
आदरणीय हर्ष जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका. सादर
आदरणीय सुनील जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका. आपने सही कहा मिसरे के कारण तकाबुले-रदीफ़ दोष आया है. सुधारने का प्रयास करता हूँ सादर
आदरणीय समर कबीर जी, ग़ज़ल की सराहना मार्गदर्शन और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका.
मतले में जाएँ को सही कर जाए करता हूँ
आपके मार्गदर्शन अनुसार इस मिसरे को निवेदित किया है-
मुआमले को लगे वो रफा-दफ़ा करने.
सादर
बहुत सुन्दर ... सादर बधाई स्वीकारें.............
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