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नवगीत

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तुलसी के बिरवे ने तेरी 
याद दिलाई है
सर्दी नहीं लगी थी फिर भी
खांसी आई है
खड़े खड़े सब देख रहा है
मन भौंचक्के
अक्स ज़ेहन से चुरा ले गए 
ख़्वाब उचक्के 
शोर मचाती भाग रही
कोरी तनहाई है
बंद हुआ कमरे में दिन
सिटकिनी लगा के 
आदत से मज़बूर छुप गई 
रात लजा के 
चन्दा सूरज ने इनको 
आवाज़ लगाईं है
घर का कोना कोना अब तक
बिखरा बिखरा है
गलियों में भी एक अदद 
सन्नाटा पसरा है
लगता अभी अभी लौटा 
कोई दंगाई है
कितने तीर निशाने पर से 
चूक गए
अरमानों के पिंजरे सारे
टूट गए
पीर वही समझेगा जिसकी 
फटी बिवाई है
चाँद पार करने पर एक
नगर बसता है
बेशक लंबा जाने का  
उस तक रस्ता है
चलो चलें हम वहीँ अगर
ये जग बलवाई है

 

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Comment

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Comment by दुष्यंत सेवक on April 15, 2011 at 4:54pm
अरे राणा जी वैसे तो बड़े दिनों में obo पर आना यूँ ही एक सुखद अनुभव होता है लेकिन इस बार तो अंतस तक इतना प्रभावित हुआ हूँ की यह लॉग इन अविस्मरणीय अनुभव बन गया है....बेहद ही खूबसूरत लफ़्ज़ों मे एक शानदार गीत पढ़ने को मिला. बधाई स्वीकारें.
Comment by Lata R.Ojha on April 14, 2011 at 9:39pm
Bahut hi sundar rachna hai Rana ji :) badhai:)
Comment by Abhinav Arun on April 14, 2011 at 9:23pm

वाह सुन्दर और सहज रचना ..मन और घर के संजोग की कविता ! साधुवाद राणा जी !!!

चाँद पार करने पर एक
नगर बसता है
बेशक लंबा जाने का  
उस तक रस्ता है
चलो चलें हम वहीँ अगर
ये जग बलवाई है
बहुत बढियां पंक्तियाँ !!
Comment by आशीष यादव on April 14, 2011 at 2:22pm

ek behatarin rachna ke liye badhai sir,

घर का कोना कोना अब तक
बिखरा बिखरा है
गलियों में भी एक अदद 
सन्नाटा पसरा है
लगता अभी अभी लौटा 
कोई दंगाई है
ye panktiya to behatarin hai.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on April 14, 2011 at 10:17am
बागी भैया
पसंद करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया|

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on April 14, 2011 at 10:12am
विवेक भाई
बस आप लोगो कि मोहब्बत है जो कुछ टूटा फूटा परोस देता हूँ| बहुत बहुत शुक्रिया|

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on April 14, 2011 at 10:11am
राजीव जी
आपको रचना पसंद आई ..बहुत बहुत आभारी हूँ आपका|

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on April 14, 2011 at 10:10am
आदरणीय सौरभ सर
आपका आशीर्वाद मिला ..गीतकारी सफल हुई लगती है|

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 14, 2011 at 10:04am
राणा भाई बहुत दिनों बाद आपकी कोई पोस्ट ब्लॉग सेक्सन के अंतर्गत आई है, पर वाकई इन्तजार का फल मीठा है , क्या बेहतरीन गीत आपने पोस्ट किया है, बहुत ही सुंदर भाव है और साथ ही प्रवाह इतना बढ़िया कि बस गाते जाओ, मुखड़ा बेहद खुबसूरत बन पड़ा है, बहुत बहुत बधाई राणा जी इस शानदार रचना हेतु ,
Comment by विवेक मिश्र on April 14, 2011 at 12:41am
कितना इंतज़ार करवाया राणा भाई आपने. और जब कदम रखा तो एकदम से दिल की गहराइयों तक उतरते ही चले गए. बेहद खूबसूरत ख़याल और उससे भी खूबसूरत उसकी अदायगी. मेरे पास तो लफ्ज़ ही नहीं हैं. 'वाह' के अलावा क्या कह सकते हैं..

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