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ग़ज़ल-पता अपना बता दे तू मुझे ऐ आसमाँ वाले।

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
मेरी तकदीर में लिख दे उसे ऐ आसमाँ वाले।
सिवा उसके मुझे कुछ भी न दे ऐ आसमाँ वाले।

मुझे उस शख़्स के दिल में बसा दे सिर्फ चाहे तू।
नसीबों के सभी सुख छीन ले ऐ आसमाँ वाले।

बिना तुझसे मिले समझा नहीं सकता तुझे अब मैं।
पता अपना बता दे तू मुझे ऐ आसमाँ वाले।

मुहब्बत के सफर में अब मुहब्बत के परिन्दें हो।
मिटा दे नफरतों के काफिले ऐ आसमाँ वाले।

न बस्ती में न जंगल में न सहरा में न उपवन में।
ये दिल मेरा न सावन में लगे ऐ आसमाँ वाले।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 18, 2015 at 10:02am
सर मै विधा का जानकार नही हु
पर आप की गजल
मुझे बेहद सुन्दर लगी
शुरू से लेकर अंत तक
बेहद सुन्दर भाव थे
को कही टूटते नही लगे
खास आप का रदीफ़ लगा
ऐ आसमाँ वाले
दिल से बधाई नमन
Comment by Rahul Dangi Panchal on September 3, 2015 at 9:19pm
आदरणीय मंच के सभी गुनीजनों का बहुत बहुत आभार । घर की समस्याओं के चलते कुछ नहीं कर पा रहा हूँ न ही मंच सनय दे पा रहा हूँ । आशा आदरणीय मंच मुझे क्षमा करेगा। सादर।
Comment by मोहन बेगोवाल on September 3, 2015 at 9:15pm

 आदरणीय राहुल जी, आप जी की ग़ज़ल के सभी अश'आर बहुत अच्छे लगे , खास कर ये शे'र बहुत कमाल का 

न बस्ती में न जंगल में न सहरा में न उपवन में, 

ये दिल मेरा न सावन में लगे ऐ आसमाँ वाले।- दाद कबूल करें 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 2, 2015 at 12:41pm

आदरणीय राहुल जी, बड़े ही ख़ूबसूरत अश’आर हुए हैं। दाद कुबूल कीजिए


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2015 at 11:01am

आदरणीय राहुल भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है , सभी शे र सुन्दर  लगे ! आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Ravi Shukla on September 1, 2015 at 11:17pm
आदरणीय राहुलजी सुन्दर ग़ज़ल हुई है
बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Shyam Narain Verma on September 1, 2015 at 7:07pm
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल ....हार्दिक बधाई ! 
Comment by मनोज अहसास on September 1, 2015 at 3:05pm
नमस्कार सर
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है
एक दो शेर और बढ़ा देगे
तो और बढ़िया लगेगा
और बहुत दिनों बाद आप आये
स्वागतम्
मेरे ब्लॉग पर एक दो रचनाये आपकी अनुस्थिति में मैंने डाली है
उम्मीद है आप उन्हें देखेगे
सादर

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