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ग़ज़ल :- वाक़ई,ये ज़िन्दगी जंजाल है

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

क्या कहूँ तुमसे,ये मेरा हाल है
ख़ाली तर्कश,हाथ में इक ढाल है

रिश्तेदारों का ये इक जम्मे ग़फ़ीर
वाक़ई, ये ज़िन्दगी जंजाल है

क्यूँ रहे,इतनी ख़बर भी आप को
क्या महीना,कौन सा ये साल है

लग गई है उसको बीमारी अजीब
पास दौलत है मगर कंगाल है

न कोई तालीम है,न तरबियत
ये तो बस तहज़ीब का नक़्क़ाल है

जानवर की खाल दे देते हैं बस
और फिर ख़ाली,ये बैतुलमाल है

कुछ का कुछ आने लगा इसमें नज़र
आपके शीशे में देखो,बाल है

हज़रत-ए-"ख़ुशनूद" किस गिन्ती में हो
क़द्र उसकी है,जो माला माल है

शुक्र जितना भी करूँ कम है,"समर"
सर पे छत खाने को रोटी दाल है

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by rajesh kumari on July 27, 2015 at 7:20pm

क्या कहूँ तुमसे,ये मेरा हाल है-----क्या कहूँ तुमसे, मेरा ये हाल है ......करें तो शायद लय बेहतर होगी भाई  जी 
ख़ाली तर्कश,हाथ में इक ढाल है----कमाल का मतला 

न कोई तालीम है,न तरबियत
ये तो बस तहज़ीब का नक़्क़ाल है----बहुत सुन्दर वाह ... एक बात पूछनी  है आपसे न को आपने २ मात्रिक  किया है क्या ये हो सकता

है ?

कुछ का कुछ आने लगा इसमें नज़र
आपके शीशे में देखो,बाल है------वाह्ह्ह्हह 

बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आ० समर भाई जी दिल से दाद कुबूलें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 27, 2015 at 4:44pm

आदरणीय समर कबीर जी, हमेशा की तरह शानदार ग़ज़ल हुई है. अपने पाठक से ..वैसे इस बार थोड़ी मेहनत करा ली आपने ..... दो तीन अशआर को समय लगा समझने में. एक से बढ़कर एक अशआर हुए है. दिल से दाद कुबूल फरमाएं. ग़ज़ल पढ़कर खूब आनंद आया सीखने को मिला सो अलग .... आभार 

Comment by Ravi Shukla on July 27, 2015 at 3:37pm

आरणीय समर कबीर जी

शानदार ग़ज़ल

क्यूँ रहे,इतनी ख़बर भी आप को
क्या महीना,कौन सा ये साल है

सादा जुबान में क्‍या बात कही है । मुबारक

हज़रत-ए-"ख़ुशनूद" किस गिन्ती में हो
क़द्र उसकी है,जो माला माल है

आज की हकीकत है जनाब बहुत खूब

शुक्र जितना भी करूँ कम है,"समर"
सर पे छत खाने को रोटी दाल है

 उस मालिक का शुक्र और वही सादगी दिली दाद कुबूल करें समर जी

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 27, 2015 at 2:14pm
आदरणीय सुन्दर गजल हुई है बधाइयाँ
Comment by Harash Mahajan on July 27, 2015 at 1:43pm

आदरणीय Samar kabeer जी आपकी हर पेशगी और शब्दावली बे-मिसाल है हर शेर को कहने का अंदाज़ हमें सिखाने कुछ न कुछ ज़रूर दे जाता है | मुझे उम्मीद है इस मंच पर आकर मैं बहुत कुछ सीख पाऊँगा | शुक्रिया !!

साभार !!


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Comment by गिरिराज भंडारी on July 27, 2015 at 1:21pm

आदरणीय समर भाई , बेहतरीन ग़ज़ल कही है हमेशा की तरह । दिली दाद और मुबारक बाद हाज़िर है , स्वीकार करें । जो शब्द जियादातर उपयोग मे नही आते उनका अर्थ दे कर आपक हमे शब्द कोश देखने  से बचा सकते हैं आदरणीय ।

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