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ला रहा रवि पालकी

ला रहा रवि पालकी

 

 

खोल कर आकाश के पट

चल पड़ा है सारथी

खिल रहीं मदहोश कलियाँ

ला रहा रवि पालकी

 

भोर में ममता लुटाती

स्वर सजीली रागिनी

आ विराजा श्याम कागा

चल सखी-री जाग-री

 

प्रात का मंचन अनोखा

रश्मियाँ— अप्लावतीं

 

तृप्त तारक चल पड़े

विश्रांति की आगोश में

चाँदनी मुख ढक चली

सब आ गए यूं होश में

 

मौन सपनों को सजाने

चल पड़े सब भारती

 

खिल रहीं हैं पराग कनिका

गा रहे अलि राग में

शीतल मलय बहने लगी

झरने झरे अनुराग में

 

उद्घोष अपना कर रही

भारती उषा जल गागरी

 

छोर अंबर का खुला

बहने लगा रंग लाल सा

बिहाग कुल हँसने लगे

सूरज जला है मशाल सा

 

बुझ गए नभ दीप सारे

पनघट चलीं सब ग्वालिनी ॥

मौलिक व अप्रकाशित

कल्पना मिश्रा बाजपेई  

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Comment

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Comment by maharshi tripathi on July 22, 2015 at 10:22pm

इस सुन्दर रचना पर आपको ,बधाई आ.कुछ शब्दों के अर्थ स्पष्ट करें ताकि कविता और बेहतर समझ सकूँ |

रश्मियाँ— अप्लावतीं,विश्रांति,पराग कनिका |

Comment by pratibha pande on July 22, 2015 at 8:01pm

हर पंक्ति मोहित कर रही है ,  बधाई इस सुन्दर रचना पर ,आ० कल्पना जी 

Comment by Samar kabeer on July 22, 2015 at 6:38pm
मोहतरमा कल्पना मिश्रा बाजपाई जी,आदाब ,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
Comment by मनोज अहसास on July 22, 2015 at 12:15pm
नमस्कार
बहुत सूंदर प्रभावपूर्ण रचना
पर एक जिज्ञासा है
सूर्य का रथ होता है
और उनके सारथि उसे चलाते है
ऎसे में
ला रहा रवि पालकी
क्या ये उचित है
कृपिया समाधान कर दे
सादर

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