For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मिठाई ( लघुकथा )

नास्तिक बाबूजी को देर रात ,चुपके से पूजाघर से निकलते देख मानस की उत्सुकता जाग गई,और पुलिसिया मन शंकित हो उठा।वो चुपके से उनके पीछे चल पड़ा।

उन्होंने हाथ में पकड़ा लड्डू माँ की ओर बढ़ा दिया
" लो खा लो "
" ये कहाँ से लाए आप ?"
"पूजा घर से "उन्होंने निगाह चुराते हुए कहा।
उसकी आँखें भर आयीं अपनी लापरवाही पर। घर में सौगात में आये मिठाई के डिब्बों का ढेर मानो उसे मुँह चिढ़ा रहा था।


( मौलिक एवम अप्रकाशित )

Views: 734

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 16, 2015 at 10:10am

आदरणीया , आपकी पोस्ट के ऊपर दाहिनी तरफ एक बटन है  आप्शन का , उसे दबायेंगे तो आपका एडिट पोस्ट का आप्शन दिखेगा उसे आप दबा कर अपनी पोस्ट मे सुधार कर सकते हैं , सुधार कर के फिर से नीचे  एक बटन उसे दबा दें । आपकी पोस्ट फिर से प्रकाशित की जायेगी प्रधान संपादक  द्वारा , कुछ समय लगेगा पुनः प्रकाशन में ।

Comment by jyotsna Kapil on July 16, 2015 at 9:11am
आपकी हृदयतल से आभारी हूँ आ.गिरिराज भंडारी जी की अपने कथा को पसन्द किया। आपका कथन की किसकी आँख भर आई स्पष्ट नहीं हुआ,मुझे भी अपनी त्रुटि का भान हुआ।आँख बेटे यानि मानस की भर आई।अल्पज्ञानी होने के कारण इस गलती को सुधारूँ कैसे मुझे नहीं पता। यदि यहाँ एडिट का ऑप्शन हो तो कृपया मुझे बतायें।
Comment by jyotsna Kapil on July 16, 2015 at 9:03am
सादर नमन एवम आभार आ. डॉ. विजय शंकर जी कथा को पसन्द करने एवम सराहना के लिए।आपके शब्दों ने मेरा मनोबल बहुत बढ़ाया है।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 16, 2015 at 6:12am

आदरणीया , लघुकथा बहुत अच्छी लगी , आपको हार्दिक बधाई । किसकी आँख़ें भर आये ये मुझे साफ नही हुआ , मैने तीनो पात्र की आखों एक के भर के समझने की कोशिश की है ।मुझे लगता है उसकी की जगह पात्र का नाम आना चाहिये था । ये भी होसकता है कि कम पढा होने के कारण मै न समाझा  हो ऊँ ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 15, 2015 at 11:52pm
प्रेमचंद रचित " बूढ़ी काकी " आ गई , आदरणीय सुश्री ज्योत्स्ना जी , सादर।
Comment by jyotsna Kapil on July 15, 2015 at 9:45pm
अन्तस् से आभार स्नेही अनुजा नेहा अग्रवाल जी कथा को पसन्द करने व् उसकी सराहना के लिए।
Comment by jyotsna Kapil on July 15, 2015 at 9:44pm
आपका हर शब्द मेरे लिए अनमोल है आ.राजेश कुमारी जी।आज लग रहा है मानो लेखन सफल हो गया।आपको हृदयतल से आभार एवम नमन।
Comment by jyotsna Kapil on July 15, 2015 at 9:42pm
कथा को पसन्द करने व अभिमत देने हेतु आपकी अति आभारी हूँ आ.प्रतिभा पांडे जी
Comment by neha agarwal on July 15, 2015 at 8:17pm
बहुत खूब दी आह से वाह तक की कथा।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 15, 2015 at 10:34am

उफ्फ्फ हृदय कचोट गई ये लघु कथा ..इससे बड़ा तिरस्कार भला क्या होगा बुजुर्गों का ....अपना प्रभाव अपना सन्देश छोड़ने में कामयाब इस सशक्त लघु कथा के लिए दिल से ढेरों बधाई आपको ज्योत्स्ना जी|  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
10 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
13 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
13 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
14 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
14 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
14 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service