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किटी पार्टी ( कहानी )

किटी पार्टी मे मौजूद सभी महिलाऐं नीलिमा का इंतज़ार कर रही थीं।आज उसे न जाने क्यों इतनी देर हो गई थी।तभी वह एक दुबली पतली आकर्षक महिला के साथ आती नज़र आई।

" ये अनु है-हमारी किटी की नई मैम्बर-मेरे पड़ोस में अभी आई है ट्रान्सफर होकर-सोचा तुम सब से परिचय करा दूँ " नीलिमा ने कहा।

सभी बारी-बारी से उसे अपना परिचय देने लगीं।अनु हँसमुख स्वभाव की युवती थी।जल्दी ही उनसब के साथ घुल मिल गई।

हँसी मज़ाक के बीच गीत ने अपने एक रिश्तेदार का अनुभव बताना शुरू किया की कैसे एक बुरी आत्मा ने उन्हें सताया।बस फिर बातों का विषय बदलकर आत्मा,भूत-प्रेत हो गया।सभी बढ़कर-चढ़कर एक से एक किस्से बताने लगीं।

पर सबके बीच अनु एकदम खामोश थी।न जाने किस सोच में डूबी हुई।

"तुम क्या सोच रही हो अनु ?"चारु ने उसे गुदगुदाया " डर लग रहा है क्या ?"

" हूँ " वह चौंक पड़ी " न..नहीँ तो " उसका चेहरा फीका सा पड़ गया था।सबकी निगाह अब उसके चेहरे पर होते भाव परिवर्तन पर थी।सबको अपनी ओर ताकते पाकर एक फीकी सी मुस्कान उसके चेहरे पर खेल गई।

" एक बात है-पर सोच रही हूँ की कहुँ या न कहुँ " उसने सबके चेहरे पर दृष्टि दौड़ाई।

" हाँ बोलो न " सबने उत्सुकता से कहा।

" दरअसल ऐसी ही एक घटना मेरे साथ भी घटी है " वह रहस्यमय अंदाज़ में बोली।

" बताओ न- प्लीज़ " इस बार नेहा बोली।

" ठीक है " उसने एक ठण्डी साँस छोड़ी " पिछले शहर में हम अच्छी खासी ज़िन्दगी गुज़ार रहे थे ,की मकान मालिक ने दूसरा मकान ढूँढने के लिए कहा।उसके घर में रहते हुए हमे चार साल गुज़र गए थे।

अब शुरू हुई नया मकान ढूँढने की जद्दो-जहद ।कभी कोई मकान हमारे मुताबिक नहीँ था ,तो कभी कोई कॉलोनी। कहीं किराया ज्यादा तो कहीं कोई और दिक्कत।

आखिर बड़ी मुश्किल से एक मकान हमे पसन्द आया। मकान शानदार था और किराया काफी कम।न जाने क्यों इतने कम किराये में मकान मालिक वो घर किराये पर उठा रहा था।

ख़ैर!!!! हमने वहाँ शिफ्ट कर लिया।
सारा सामान सेट हो गया तो मैंने चैन की साँस ली। उस दिन बहुत थक गई थी,तो थोड़ी देर कमर सीधी करने अपने बेडरूम में जाकर लेट गई।सीधी लेटी मैं छत की और देख रही थी....की तभी न जाने क्यों मुझे लगा की एक चेहरा उसमे उभर रहा है।मेरे जिस्म में एक सिहरन सी दौड़ गई।मैंने आँखें बन्द कर लीं।फिर खोलकर देखा तो वहाँ कुछ न था।अपने मन का वहम समझकर मैं मुस्कुरा दी।

रात में मेरे पति सो चुके थे।मैंने फिर डरते हुए ऊपर देखा।वो चेहरा फिर उभरना शुरू हुआ।मैं चीख पड़ी,और पति को झिंझोड़ डाला।वो जागे तो मैंने अपना अनुभव उन्हें बताया ।फिर हम दोनों ने ऊपर देखा तो चेहरा गायब था।वो झुंझला पड़े,और फालतू के सीरियल को दोष देते हुए मेरे दिमाग का फितूर बताने लगे।

दूसरे दिन आराम करने गई तो एक दिन पहले का वहम याद आ गया।मेरी दृष्टि फिर वहीँ जम गई।धीरे-2 फिर से वही चेहरा दिखाई दिया।इस बार वह अधिक स्पष्ट था।मैंने फिर आँखें बन्द कर लीं,और फिर देखा तो वो चेहरा गायब था।अब थोडा सा डर मुझे महसूस हुआ ।

इसके बाद वो चेहरा अक्सर मुझे दिखाई देने लगा। घर में अब यह भी महसूस होने लगा की कोई मुझपर नज़र रख रहा है।मैं परेशान रहने लगी।हालाँकि उसने मुझे कोई नुकसान कभी नहीं पहुँचाया।मेरे पति मुझे मनो चिकित्सक के पास ले गए।मेरा दिमागी इलाज शुरू हो गया।

एक दिन मैं अपने बेडरूम में गई तो देखा की पंखे से एक औरत लटकी हुई है।मैं चीख पड़ी,और दौड़ती हुई घर से बाहर निकल आई।लोग मुझे देखने लगे।फिर एक दो महिलाएं मेरे पास आकर कारण पूछने लगीं।जब मैंने उन्हें बताया ,तो एक महिला झिझकती हुई बोली की मुझसे पहले उस घर में जो परिवार रहता था उसमें रहने वाली महिला ने अपने पति की बुरी आदतों और चरित्रहीनता से तंग आकर आत्महत्या की थी। शायद उसकी आत्मा ही भटक रही थी।

फिर हमने एक बड़े तांत्रिक को बुलाकर पूजा पाठ करवाया।उसकी आत्मा की शांति के लिए हवन करवाया।उस दिन के बाद वो मुझे कभी नज़र नहीं आई।शायद उसकी भटकती आत्मा को शांति मिल गई थी। " कहकर अनु चुप हो गई।जो कुछ उसने भुगता था उसकी काली छाया उसके चेहरे पर साफ नज़र आ रही थी।

कमरे में एकदम सन्नाटा था।सबपर उसकी आप बीती का प्रभाव विद्यमान था।

" चलो अब घर चला जाए-काफी देर हो चुकी है " चारु ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा।

" हाँ " सबकि निगाह दीवार पर लगी घड़ी की ओर उठ गई।

" पर दो बातें हैं " उठते हुए अनु ने कहा।

सबकी निगाहें उसके चेहरे पर जम गईं।

" एक तो ये- की वो घर में मेरे सिवा किसी को कभी दिखाई नहीं दी- और न ही किसी ने कभी घर में -परिवार के अलावा किसी और का अस्तित्व महसूस किया " ये कहते हुए वह उठ खड़ी हुई।अपना पर्स उठाया और चल पड़ी

" और दूसरी बात ? " गीत ने उत्सुकता से अपनी निगाहें उसपर गड़ा दीं।

अनु ने सबकी ओर देखा।हर निगाह का केंद्र बिंदु बस वही थी। कुछ पल सस्पेंन्स सा बनाते हुए वह खामोश रही

" ये ---की मैं बहुत अच्छी एक्ट्रेस और स्टोरी टेलर हूँ "

" मतलब ?" चारु हैरान थी ,साथ ही बाकि लोग भी कुछ न समझने के अंदाज़ में देख रहे थे।

" मतलब की ये कहानी मैंने अभी-अभी बनाई है " कहकर वह ठहाका लगाकर हँस पड़ी। कुछ पल बाद ,बात समझ में आने पर सबका सम्मिलित ठहाका गूँज पड़ा।

( मौलिक एवम् अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by jyotsna Kapil on July 15, 2015 at 9:35pm
आ.विनय कुमार सिंह जी अपने सदैव ही मेरा मनोबल बढ़ाया है।इसके लिए आपकी अति आभारी हूँ।
Comment by jyotsna Kapil on July 15, 2015 at 9:33pm
आ.राजेश कुमारी जी अपने न सिर्फ कहानी को पसन्द किया बल्कि इतना सुंदर अभिमत भी दिया आपकी अति आभारी हूँ,सादर नमन आदरणीया।
Comment by jyotsna Kapil on July 15, 2015 at 9:31pm
आ.मोहन सेठी जी आपको घबराने की अवश्यकता नहीं।क्योंकि वो चेहरा तो कल्पना की उड़ान था नायिका की।अपने कहानी को समय दिया,सराहा...बहुत आभारी हूँ आपकी।
Comment by neha agarwal on July 15, 2015 at 8:22pm
डर लग रहा है अब तो मुझे दी याद है मेरी पिक में भी कोई था ना ही ही ही।
Comment by विनय कुमार on July 15, 2015 at 6:30pm

बढ़िया रोचक कहानी , अंत तक सस्पेंस बरकरार रहा , बधाई आदरणीया ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 15, 2015 at 6:07pm

बहुत अच्छी कहानी है पढ़ते पढ़ते खो सी गई थी ये रोचकता ही इस कहानी की विशेषता है बहुत बहुत बधाई ज्योत्स्ना जी |

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 15, 2015 at 5:05pm

आदरणीय jyotsna Kapil जी कहानी रोचक लगी ...सवाल ये है कि कहीं आज रात वो चेहरा मुझे तो .....सादर 

Comment by jyotsna Kapil on July 14, 2015 at 10:13pm
बहुत-2 आभार एवम् नमन आ.सुशिल सरना जी कहानी को पसन्द करने एवम् अपना अभिमत देने हेतु।
Comment by jyotsna Kapil on July 14, 2015 at 10:11pm
सादर नमन एवम आभार आ.पंकज जोशी जी कहानी को पढ़ने व् सराहने के लिए।आपके शब्द मेरी पूँजी हैं आदरणीय।आपने मेरे हौसलों को पंख दे दिए।
Comment by Sushil Sarna on July 14, 2015 at 7:52pm

सुंदर कहानी की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई आदरणीया जी। 

कृपया ध्यान दे...

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