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ग़ज़ल-नूर- फिर वो मीरा, राबिया दे जाएगा.

२१२२/२१२२/२१२/
मंज़िलों का जो पता दे जाएगा
ज़िंदगी का फ़लसफ़ा दे जाएगा.
.
और थोड़ा फ़ासला दे जाएगा
ज़िंदगी की गर दुआ दे जाएगा.
.
दिल को सतरंगी छटा दे जाएगा
फिर धड़कने की अदा दे जाएगा.
.
ग़म हमें अब और क्या दे जाएगा
बस नया इक तज्रिबा दे जाएगा.
.
आएगा कोई पयम्बर फ़िर नया
फ़िर नया हम को ख़ुदा दे जाएगा.
.
जब वो सोचेगा हमारे वास्ते
फिर वो मीरा, राबिया दे जाएगा.
.    
“नूर” बरसेगा ख़ुदा का एक दिन
मुश्किलों में रास्ता  दे जाएगा.
.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

Views: 1047

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 3, 2015 at 11:30am

शुक्रिया आ. मिथिलेश जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 3, 2015 at 11:30am

शुक्रिया आ. श्री सुनील जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 3, 2015 at 11:30am

शुक्रिया आ. राजेश कुमारी जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 3, 2015 at 11:29am

शुक्रिया आ. डॉ गोपाल नारायण जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 3, 2015 at 11:29am

शुक्रिया आ. धर्मेन्द्र जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 3, 2015 at 11:29am

शुक्रिया आ. राहुल जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 3, 2015 at 11:28am

शुक्रिया आ. सलीम साहब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 3, 2015 at 11:28am

शुक्रिया आ. मनोज जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 3, 2015 at 11:28am

शुक्रिया नीरज कुमार जी 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 2, 2015 at 2:27pm

और थोड़ा फ़ासला दे जाएगा
ज़िंदगी की गर दुआ दे जाएगा.           गजब  nilesh सर! क्या कहने!

शेर दर शेर दाद प्रेषित है आदरणीय!

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