For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

परिणति पीड़ा

रिश्ते के हर कदम पर, हर चौराहे पर

हर पल

भटकते कदम पर भी

मेरे उस पल की सच्चाई थी तुम

जिस-जिस पल  वहीं कहीं पास थी तुम

जीवन-यथार्थ की कठिन सच्चाइयों के बीच भी

खुश था बहुत, बहुत खुश था मैं

पर अजीब थी ज़िन्दगी वह तुम्हारे संग

स्नेह की ममतामयी छाओं के पीछे भी मुझमें

था कोई अमंगल भ्रम

भीतरी परतों की सतहों में हो जैसे

अन-चुकाये कर्ज़ का कंधों पर भार

तुमसे कह न सका पर इतनी खुशी से मुझको

अकसर लगता था डर ...

डर .... कि कब किसी  ‘अविवेकी ’ सत्य के बहाने

कोई इर्ष्या-प्रसूत पल

पगलाये स्वार्थों में पली दानव-सी हँसी हँस दे

हमारे स्वर्णिम पलों की असलियत को अकस्मात

आश्रयहीन कर दे

मेरे कोमल शिशु-मन को आवेग में दबोच

भीषण दर्दीले प्रश्नों की तपती रेत में मुझको

छोड़ जाए अकेला असहाय अनुत्तरित

और आंतरिक बारूदी धुएँ से घिरा

बेचैन मन उस दम घोटते धुएँ में पुकारे तुमको

टूटे विश्वास की गहरी चोट लिए

--------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

(copyright)

Views: 1008

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 1, 2015 at 6:42pm

आदरणीय बड़े भाई विजय जी , आत्मीय रिश्ते से अलगाव का भय आपकी रचना मे मुखरित है । बहुत सुन्दर , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

Comment by vijay nikore on July 1, 2015 at 3:09pm

//भटक रहा रति सा विकल  तुम हो चुकी अनंग  I

जीवन  बस  कट्ता  यहाँ  इस  पीड़ा  के  संग  I//

आपके लिखे इन शब्दों की भावना मेरी रचना से सुगम सस्पंदन करती है।

हार्दिक आभार, आदरणीय गोपाल नारायन जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 1, 2015 at 2:58pm

आदरणीय निकोर सर, आपने मन में उपजे अंतर्संबंधों के विलगने के भय को बड़ी सहजता से शाब्दिक किया है बिम्ब और प्रतीकों में  मन राजस्थान का रेतीला बार्डर हो गया है. इस भावात्मक प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई, नमन 

Comment by vijay nikore on July 1, 2015 at 1:07pm

//मन में समाये रिश्तों के खोने का भय , बहुत सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है//

रचना की सराहना के लिए हृदयतल से आभार, आदरणीय विजय शंकर जी।

Comment by shree suneel on July 1, 2015 at 8:06am
अच्छी प्रस्तुति आदरणीय विजय निकोर सर. बधाई आपको.
Comment by Hari Prakash Dubey on June 24, 2015 at 5:56pm

आदरणीय विजय निकोर सर , बहुत सुन्दर  रचना , हार्दिक बधाई , सादर।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 24, 2015 at 4:21pm

भटक रहा रति सा विकल  तुम हो चुकी अनंग  I

जीवन  बस  कट्ता  यहाँ  इस  पीड़ा  के  संग  II ---------सादर निकोर जी

Comment by vijay nikore on June 24, 2015 at 10:10am

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मदन मोहन जी।

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 23, 2015 at 10:02pm

मन में समाये रिश्तों के खोने का भय , बहुत सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है, बधाई, आदरणीय, विजय निकोर जी , सादर। 

Comment by Madan Mohan saxena on June 23, 2015 at 4:14pm

superb

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
15 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
19 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
55 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
10 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
10 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
12 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service