For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो पत्थर था , बहुत थे फेंकने वाले
बन गए हीरे पर , उसे तराशने वाले


कब समझा है कोई वक़्त का इशारा
बन गए हैं ख़ुदा , उसे समझने वाले


ख्वाहिशें तो रखते है ज़माने में सब
और ही होते हैं ,उन्हें पूरा करने वाले


ग़ुम है बदगुमानी में ,ये सारी दुनिया
मिलते हैं कहाँ ,अब सच लिखने वाले


तलाश थी सिर्फ , एक फूल की विनय
हज़ार मिले राह में, कांटे रखने वाले !!

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 781

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on June 17, 2015 at 4:13pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी .

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 17, 2015 at 1:23pm

आदरणीय विनय जी ..भाव सुंदर हैं बस शिल्प की जरूरत है ..आदरणीय गिरिराज भाईसाब के मशविरे पर अमल करियेगा ..सादर 

Comment by विनय कुमार on June 16, 2015 at 12:47pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , प्रयासरत हूँ ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 16, 2015 at 8:35am

आदरणीय विनय भाई , गज़ल कहने का प्रयास बहुत आशा जनक है , हार्दिक बधाइयाँ । बस आपको  '' गज़ल की बातें ''  जो मंच पर उपलब्ध है का पाठ करना चाहिये , ताकि कुछ आधार भूत नियम जान सकें । हार्दिक शुभ कामनायें ।

Comment by विनय कुमार on June 15, 2015 at 10:03pm

आदाब आदरणीय समर कबीर जी , प्रयास करूँगा की सीख सकूँ .

Comment by विनय कुमार on June 15, 2015 at 10:02pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय सुशील सरना जी .

Comment by Samar kabeer on June 15, 2015 at 4:15pm
जनाब विनय कुमार सिंह जी,आदाब,मैं बहना राजेश कुमारी जी की बात से शत प्रतिशत सहमत हूँ,उनकी बातों का ध्यान दीजियेगा,बाक़ी शुभ शुभ ।
Comment by Sushil Sarna on June 15, 2015 at 2:16pm

वो पत्थर ही था और पत्थर ही रहा
बन गए हीरे पर , उसे तराशने वाले

वाह … बहुत खूबसूरत अशआर आपने प्रस्तुत किये हैं आपने आदरणीय … खूबसूरत अहसासों से भरी इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सर।

Comment by विनय कुमार on June 15, 2015 at 12:47pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव साहब , मैं पुनः प्रयास करता हूँ | आपका धन्यवाद जो आपने इतना समय दिया इस रचना पर..

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 15, 2015 at 11:23am

अ० विनय जी

आपने मतला सुधार लिया मगर उसे अन्त में फिर दुहराया यह कदापि स्वीकार्य नहीं है क्योंकि गजल का अंतिम शेर जिसमें शायर का तखल्लुस भी होता है उसे मक्ता कहते है  i यदि  किसी कारण से तखल्लुस न आ पाये तो फिर उसे गजल का आखिरी शेर ही कहेंगे i गजल का बहर में लिखना भी अनिवार्य है बेबहर रचना गजल नहीं होती  I मैं  आपको कुछ आसन बहर बता रहा हूँ -

122  122 ---------------बहर का नाम है मुतकारिब मुरब्बा सालिम

122  122  122 -------------------------मुतकारिब मुसद्दस सालिम

122 122  122  122------------------- मुतकारिब मुसम्मन  सालिम

---- सादर ,.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
7 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
33 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी  वाह !! सुंदर सरल सुझाव "
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी सादर अभिवादन बहुत धन्यवाद आपका आपने समय दिया आपने जिन त्रुटियों को…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी सादर. प्रदत्त चित्र पर आपने सरसी छंद रचने का सुन्दर प्रयास किया है. कुछ…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार घुसपैठ की ज्वलंत समस्या पर आपने अपने…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
""जोड़-तोड़कर बनवा लेते, सारे परिचय-पत्र".......इस तरह कर लें तो बेहतर होगा आदरणीय अखिलेश…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"    सरसी छंद * हाथों वोटर कार्ड लिए हैं, लम्बी लगा कतार। खड़े हुए  मतदाता सारे, चुनने…"
3 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी हार्दिक आभार धन्यवाद , उचित सुझाव एवं सरसी छंद की प्रशंसा के लिए। १.... व्याकरण…"
5 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द लोकतंत्र के रक्षक हम ही, देते हरदम वोट नेता ससुर की इक उधेड़बुन, कब हो लूट खसोट हम ना…"
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service