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उजले-उजले सूरज खोये कैसे कैसे (ग़ज़ल 'राज')

२२२२ २२२२ २२२२   

दुनिया ने तो  काँटे बोये कैसे कैसे  

चुन-चुन कर हम कितना रोये कैसे कैसे  

 

काँटों तक ही दर्द नहीं सीमित था अपना  

बातों- बातों तीर  चुभोये कैसे कैसे

 

तुमको देखा तो जाने क्यों आया जाला

मल-मल कर आँखों को धोये कैसे कैसे

 

एक हथेली दूर जहाँ पर दूजी से हो 

हम नाते-रिश्तों को ढोये  कैसे कैसे

 

काले काले मेघों की थी भूलभुलैय्या  

उजले-उजले सूरज खोये कैसे कैसे  

 

सिमटी बैठी थी भीतर चन्दन की खुशबू   

 आजू-बाजू विषधर  सोये कैसे कैसे

 

जिन सपनों को फेंक दिया था घर से बाहर 

 पलकों ने वापस संजोये  कैसे कैसे

पुछल्ला –

सूख चुका है भीतर से जज्बाती सागर 

ग़ज़लों के अशआर भिगोये कैसे कैसे

(मौलिक एवं अप्रकाशित) 

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Comment by rajesh kumari on June 8, 2015 at 4:38pm
तहे दिल से आभार नरेंद्र सिंह जी
Comment by maharshi tripathi on June 8, 2015 at 3:00pm
एक हथेली दूर जहाँ पर दूजी से होहम नाते-रिश्तों को ढोये कैसे कैस......waah...atyant sundar aa..rajesh kumari ji..
Comment by Samar kabeer on June 8, 2015 at 2:49pm
बहना राजेश कुमारी जी,आदाब,अच्छी ग़ज़ल से नवाज़ा है आपने मंच को ,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।
दो मिसरों की तऱफ आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा :-

(1)"उजले-उजले सूरज खोये कैसे कैसे"

:- बहना,सूरज तो एक ही होता है लेकिन मिसरे का बयान यह कह रहा है कि सूरज एक से अधिक हैं।

(2)"फिर-फिर दर पे आये लो ये कैसे कैसे"

:- इस मिसरे में भी बयान की कमज़ोरी साफ़ झलक रही है,फिर फिर की तकरार खटक रही है ,इस मिसरे को शायद इस तरह कहना ठीक हो :-

"हिर फिर कर वो दर पर आये कैसे कैसे"

देख लीजियेगा ,कृपया अन्यथा न लें ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 8, 2015 at 2:20pm

दीदी

खूबसूरत गजल कही आपने-

एक हथेली दूर जहाँ पर दूजी से हो 

हम नाते-रिश्तों को ढोये  कैसे कैसे

 

सिमटी बैठी थी भीतर चन्दन की खुशबू   

आजू-बाजू अजगर सोये कैसे कैसे

 

Comment by narendrasinh chauhan on June 8, 2015 at 11:30am

खूब सुन्दर गजल केव लिए बधाई


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Comment by rajesh kumari on June 8, 2015 at 10:06am

बहुत बहुत शुक्रिया मनोज जी .

Comment by मनोज अहसास on June 8, 2015 at 10:00am
इस खूबसूरत और भावुक कर देने वाली ग़ज़ल के लिए
सबसे पहले मै आपको बधाई देता हुँ
सादर

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