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“मिस मिस ! नीरज इस टॉकिंग इन हिंदी अगेन”.मनीष ने चुगली लगाते हुए टीचर से कहा .... चटाक !!!! और शिक्षाविभाग के मंत्री  नीरज श्रीवास्तव जी का हाथ अचानक गाल पर पँहुचा फिर  वर्तमान के धरातल पर लौट कर सामान्य होते हुए तेवरी स्वर में  बोले

“कई बार चेतावनी देने के बाद आँकड़ों के अनुसार तुम्हारे विभाग में कुल २० प्रतिशत हिंदी में काम होता है मनीष जी,आय एम् टॉकिंग अगेन इन हिंदी... तुम्हारे निलंबन के आदेश दो दिन में पँहुच जायेंगे” मनीष का कद मानो यकायक छोटा हो गया.    

(मौलिक एवं अप्रकाशित)   

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 5, 2015 at 11:58am

हार्दिक आभार कृष्ण भैया .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 5, 2015 at 11:57am

बहुत- बहुत शुक्रिया मनन कुमार जी. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 5, 2015 at 11:56am

आ० डॉ० गोपाल भैया ,बहुत बहुत आभार आपका जो लघुकथा का सन्देश आप तक पँहुचा.इस व्यंग के माध्यम से मैं एक बात और भी स्पष्ट करना चाहती थी ,की जिस हिंदी की खातिर बचपन  में  जिस दोस्त ने थप्पड़ लगवाया आज वही हिंदी वाला उससे ऊपर के ओहदे पर विराजमान है खाली इंग्लिश के बल पर ही कोई ऊँचा पद हासिल नहीं कर लेता, हिंदी ,अपनी मात्रभाषा का स्थान फिर भी अन्य भाषाओँ में पहला है और पहला ही रहेगा "आय एम् टॉकिंग अगेन इन हिंदी"बोलकर विधायक  उस बचपन के दोस्त को उसकी औकात दिखा रहा है शायद कथा के इस पहलु पर पाठकों का ध्यान नहीं जा रहा  न जाने क्यों  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 5, 2015 at 11:53am

आ० मोहन सेठी जी ,आपका हार्दिक आभार. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 5, 2015 at 11:52am

आ० मोहन सेठी जी ,आपका हार्दिक आभार. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 5, 2015 at 11:50am

आ० विजय शंकर जी आपको प्रस्तुति पसंद आई दिल से आभार आपका,इस व्यंग के माध्यम से मैं एक बात और भी स्पष्ट करना चाहती थी ,की जिस हिंदी की खातिर बचपन  में  जिस दोस्त ने थप्पड़ लगवाया आज वही हिंदी वाला उससे ऊपर के ओहदे पर विराजमान है खाली इंग्लिश के बल पर ही कोई ऊँचा पद हासिल नहीं कर लेता, हिंदी ,अपनी मात्रभाषा का स्थान फिर भी अन्य भाषाओँ में पहला है और पहला ही रहेगा "आय एम् टॉकिंग अगेन इन हिंदी"बोलकर विधायक  उस बचपन के दोस्त को उसकी औकात दिखा रहा है शायद कथा के इस पहलु पर पाठकों का ध्यान नहीं जा रहा  न जाने क्यों. 

Comment by विनय कुमार on June 4, 2015 at 11:23pm

जिस देश में लोग अपने आप को हिंदी भाषी कहने में शर्म महसूस करें वहां ऐसी हिंदी ही हो सकती है , अच्छा व्यंग आदरणीया राजेश कुमारी जी..

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 4, 2015 at 9:33pm

वाह आदरणीया बहुत बेहतरीन लघुकथा!हार्दिक बधाई! सादर.

Comment by Manan Kumar singh on June 4, 2015 at 7:11pm

आदरणीया, अच्छी अंग्रेज़ियत भरी हिन्दी है। रचना के लिए बधाई, सादर। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 4, 2015 at 5:45pm

आदरणीय दीदी

कथा का उद्देश्य और सन्देश मुखर एवं स्पष्ट है i एतदर्थ आपको बधाई  .

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