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कोई सुने तो बयाँ दिल का दर्द करता हूँ

मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन

मैं कैसे कर्ब से तकलीफ़ से गुज़रता हूँ
कोई सुने तो बयाँ दिल का दर्द करता हूँ

तमाम टैक्स चुकाता हूँ ज़िंदा रहने के
प शाईरी का अलग से लगान भरता हूँ

यही सबब है ,मुझे कम ही लोग जानते हैं
मैं इन फ़ुज़ूल की रुसवाईयों से डरता हूँ

अज़ल से आज तलक सिलसिला ये जारी है
मैं रोज़ जीता हूँ दुनिया में रोज़ मरता हूँ

यही तो है,मिरे फ़न का कमाल,देखो तो
जहाँ पे मिटते हैं सब लोग,मैं सँवरता हूँ

वो जिस में 'ग़ालिब'-ओ-'इक़बाल' ग़ोता ज़न थे "समर"
मैं रोज़ रात को उस झील में उतरता हूँ

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on June 10, 2015 at 4:57pm
हम तो वैसे भी आप से मुहब्बत करते हैं ,इसका सुबूत ,शिकायत उन्हीं से की जाती है जिनसे मुहब्बत हो ,मुझे आपकी मसरूफ़ियत का पूरी तरह अहसास है,स्नेह बनाए रखियेगा ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 9, 2015 at 11:10pm

हुज़ूर, इस हक़ीर की सारी परेशानियाँ आप जान जायें.. आपको भी हमसे मुहब्बत हो जाये.
हम देर करते नहीं, आदरणीय, मन मसोस कर रह जाते हैं.. जैसे ही मौका मिलता है, उछलते हुए चले आते हैं.
सादर

Comment by Samar kabeer on June 9, 2015 at 10:37pm
जनाब सौरभ पांडे जी,आदाब,बहुत इन्तिज़ार करवाया आपने, सही भी है ,बड़े लोग अक्सर देर से ही आते हैं ,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से सशुक्रगुज़ार हूँ ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 9, 2015 at 7:04pm

आदरणीय समर साहब, आपकी इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई.
मर्तज़ा शेर ने दिल छू लिया -
यही तो है,मिरे फ़न का कमाल,देखो तो
जहाँ पे मिटते हैं सब लोग,मैं सँवरता हूँ
बहुत खूब !

वो जिस में 'ग़ालिब'-ओ-'इक़बाल' ग़ोता ज़न थे "समर"
मैं रोज़ रात को उस झील में उतरता हूँ
सही बात कही आपने..

Comment by Samar kabeer on June 4, 2015 at 10:33am
जनाब श्री सुनील जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by shree suneel on June 4, 2015 at 8:04am
तमाम टैक्स चुकाता हूँ ज़िंदा रहने के
प शाईरी का अलग से लगान भरता हूँ.. उम्दा
यही सबब है ,मुझे कम ही लोग जानते हैं
मैं इन फ़ुज़ूल की रुसवाईयों से डरता हूँ... व्वाहह.. ख़ूब
सारे अशआर दिल को छूते हुए हैं आदरणीय. ख़ूब बधाईयाँ आपको.
Comment by Samar kabeer on June 3, 2015 at 11:36pm
जनाब निलेश "नूर" जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on June 3, 2015 at 11:32pm
जनाब डॉ आशुतोष मिश्रा जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on June 3, 2015 at 11:29pm
जनाब दिनेश कुमार जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on June 3, 2015 at 11:28pm
जनाब सौरभ पांडे जी,आदाब,ग़ज़ल के अरकान सही लिख दिये हैं ,ध्यान दिलाने के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

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