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बातों में आ जाता हूँ (गजल)

जब बातों में आ जाता हूँ।
तब मैं धोखा खा जाता हूँ,
तू नैनों में बसती हरदम,
तेरी पलकें छा जाता हूँ।
मेरी जां तू कह देती है,
तुझपे जां लु'टा जाता हूँ।
बज़मे-बेदिल से मैं भी तो,
देखो अब रुठा जाता हूँ।
तुझको सहरा फरमाते लेे
फिर मैं अब बु'झा जाता हूँ।
दीया जलने दे जानेमन,
शब तेरी अब उ'ड़ा जाता हूँ।
जल-जल कर जलता दीया हूँ,
तम पी हर दिश छा जाता हूँ।
'मौलिकव अप्रकाशित' @मनन
'=मात्रा का उत्थान/पतन

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Comment

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Comment by Manan Kumar singh on May 24, 2015 at 7:43pm

आदरणीय बागीजी, योगराज जी व ओपेनबूक ऑनलाइन परिवार को मेरे काव्य-संग्रह 'इंद्र्धानुष' को पुस्तक विज्ञापन योजना में शामिल कर विज्ञापित करने हेतु शतशः साधुवाद!

Comment by Manan Kumar singh on May 24, 2015 at 7:41pm

आदरणीय गोपाल भाई,श्याम भाई,वीनस जी,मिश्रा जी,समर जी,मिथिलेश जी,मुकेश जी, गिरिराज भाई!आपका आभार।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 11, 2015 at 8:53pm

आदरणीय मनन भाई , गज़ल का प्रयास बहुत अच्छा किया है , हार्दिक बधाई ।

आपने बह्र नही लिखा है , बस यही कह सकता हूँ कि सभी मिसरे एक ही बहर में नहीं लग रहे हैं , इस मंच की परम्परा के अनुसार बहर लिख दिया की जिये ताकि  सीखने वालों को सरलता हूम ।

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on May 11, 2015 at 1:55pm

pyaree rachnaa - badhaee mtira


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 11, 2015 at 9:33am

सुन्दर प्रस्तुति बधाई 

Comment by Samar kabeer on May 10, 2015 at 10:31am
जनाब मनन कुमार सिंह जी ,आदाब ,अच्छी कोशिश के लिये बधाई स्वीकार करें
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 10, 2015 at 10:18am

आ० मनन जी सुन्दर प्रयास पर बधाई!

Comment by वीनस केसरी on May 10, 2015 at 12:30am

सुन्दर प्रयास है ...

Comment by Shyam Narain Verma on May 9, 2015 at 3:49pm
सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 9, 2015 at 1:17pm

अच्छा प्रयास है  भाई

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