2122 2122 2122
शम्स तो है वो मगर डूबा हुआ है
रौशनी से बेख़बर डूबा हुआ है
अपने होने का उसे अहसास तो हो
क्यों ग़मों में इस कदर डूबा हुआ है
क्या अँधेरा मेरी नज़रों में है मौजूद
या अँधेरे में ये घर डूबा हुआ है
रौशनी के सिर्फ इक ज़र्रे के दम पर
ठण्ड से वो बेअसर डूबा हुआ है
इस जुनूने इश्क़ का होगा समर* क्या *नतीजा
सोच में कोई इधर डूबा हुआ है
फिर गुजश्ता वक्त के किस्सों में तू क्यों
आँसुओं से तर ब तर डूबा हुआ है
उसकी दुनिया तो किताबों की है दुनिया
वो झुकाये अपना सर डूबा हुआ है
मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
आ0 शिज्जू भाई जी, खूबसूरत गज़ल के लिये दाद कुबूल करे. सादर
उसकी दुनिया तो किताबों की है दुनिया
वो झुकाये अपना सर डूबा हुआ है लाजवाब!! जिन्दाबाद शेर!
उम्दा गजल पर ढेरों दाद व् मुबारकबाद कबूल फरमाएं आ० शिज्जू सर!
जिंदाबाद ग़ज़ल हुई है .......दिल खुश कर दिया ... वाह वा
क्या अँधेरे मेरी नज़रों में है मौजूद....... इस मिसरे में अँधेरे को अँधेरा कर लें
आदरणीय शिज्जु भाई , मेरी सोच मे तो आपने बहुत कठिन रदीफ का चुनाव किया है , और उतनी ही खूब सूरती से निभा भी लिया है । क्या बात है , लाजवाब !!
क्या अँधेरे मेरी नज़रों में है मौजूद
या अँधेरे में ये घर डूबा हुआ है
फिर गुजश्ता वक्त के किस्सों में तू क्यों
आँसुओं से तर ब तर डूबा हुआ है
उसकी दुनिया तो किताबों की है दुनिया
वो झुकाये अपना सर डूबा हुआ है -- इन अशआर के लिये बहुत बहुत बधाइयाँ ॥
आहा ..क्या बात ..भाई वाह ..
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल पर |
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