For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आँखों में बेबस मोती है …

आँखों में बेबस मोती है …

रात बहुत लम्बी है

ज़िंदगी बहुत छोटी है
पत्थरों के बिछोने पे
लोरियों की रोटी है
अब वास्ता ही नहीं
हाथों की लकीरों से
भूख बिलखती है पेट में
मुफलिसी साथ सोती है
आते ही मौसम चुनाव का
होठों पे हँसी होती है
राजनीति की जीत हमेशा
हम जैसों से ही होती है
हर चुनाव के भाषण में
नाम हमारा ही होता है
कुर्सी मिलते ही फिर से
फुटपाथ पे तकदीर होती है
संग होते हैं श्वान वही
वही भूखी रात होती है
रूठी हुई ज़िंदगी का 
आँखों में बेबस मोती है

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 617

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on May 7, 2015 at 7:55pm

आदरणीय  Dr Ashutosh Mishra जी रचना  पर आपकी स्नेहिल ऊर्जावान प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 6, 2015 at 2:49pm

आदरणीय सुशील जी ..वर्तमान परिदृश्य में जो कुछ हो रहा है उसका चित्रण आपने बखूबी किया है इस रचना  के माध्यम से ..जिसके लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by Sushil Sarna on May 6, 2015 at 12:49pm

आदरणीय  krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी रचना  पर आपकी स्नेहिल ऊर्जावान प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 5, 2015 at 9:06pm

आम आदमी का दर्द लिए बहुत ही लाजव़ाब कविता आपको दिल से बहुत बहुत बधाई आदरणीय shushil जी!

Comment by Sushil Sarna on May 5, 2015 at 1:08pm

आदरणीय जी  रचना पर  आपकी मधुर प्रशंसा एवं सुझाव का हार्दिक आभार। आपके सुझाव पर अमल करने का प्रयास करूंगा।  इस स्नेह हेतु आपका हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on May 5, 2015 at 1:04pm

आदरणीय मोहन सेठी  जी  रचना पर  आपकी प्रशंसात्मक स्वीकृति का हार्दिक आभार। 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2015 at 1:03pm

बहुत खूब आ. सरना साहब. 
आपकी रचना का बहुत बड़ा हिस्सा किसी न किसी बहर में है. थोडा और प्रयास कर के इसे नज़्म की सूरत में ढाला जा सकता है.
सादर  

Comment by Sushil Sarna on May 5, 2015 at 1:03pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर जी  रचना में निहित भावों को मिली आपकी प्रशंसात्मक स्वीकृति ने रचना का जो मान बढ़ाया है उसके लिए आपका हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on May 5, 2015 at 1:01pm

आदरणीय श्री सुनील  जी रचना में निहित भावों पर आपकी प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on May 5, 2015 at 1:00pm

आदरणीय समर कबीर जी रचना में निहित भावों पर आपकी प्रतिक्रिया ने लेखन को सफल किया।  आपका हार्दिक आभार। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Tuesday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service