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मुझको आता है तरस अब उस क़ज़ा पे

२१२२ २१२२ २१२२
दर्द दिल में ऑसू टपके हैं धरा पे

कुछ लिखूंगा तो लिखूंगा में जफा पे  

तुम न होते ज़िन्दगी में गर मेरी तो
मैं कभी कुछ कह नहीं पाता बफा पे

रख के सर जानो पे मरने की तमन्ना
और मत जिंदा मुझे रख तू दवा पे

लोग जिससे खौफ अब भी खा रहे
मुझको आता है तरस अब उस क़ज़ा पे

गोपियों सा प्रेम दिल में जब भी होगा
कृष्ण भागे आयेंगे तेरी सदा पे

पापियों के पाप से धरती हिली जब
थी कहानी दर्द की वादे सवा पे

लूटती हैं जब ह्वायें ही चमन को 

क्यूँ नहीं इल्जाम तय होता हवा पे 

रूप ये जलवा तुम्हारा जब न होगा
भीड़ गुम होगी जो मरती है हया पे

रुख पे लाली झुकती पलकें देख कर यूं
लुट गए आशू हसीनो की अदा पे
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 2, 2015 at 9:39am

आदरणीय मिथिलेश जी आदरणीय श्री सुनील जी ..आपकी प्रतिक्रया और मशविरे के लिए तहे दिल धन्यवाद ..मशविरे पर अमल का प्रयास अवश्य करूंगा सादर 

Comment by shree suneel on May 2, 2015 at 12:23am
आदरणीय डॉ आशुतोष जी, ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही आपने. बधाई आपको. मिथलेश वामनकर सर की टिप्पणी पर जरूर ध्यान दें. सादर.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 1, 2015 at 8:31pm

आदरणीय आशुतोष जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई है. दाद कुबूल फरमाए 

सुझाव के बाद ग़ज़ल निखर गई है.

हिज्जों में सुधार की गुंजाईश रह गई है. सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 1, 2015 at 4:29pm

आदरणीय समर कबीर जी ..आपका मार्गदर्शन सतत ही मिलता है ..आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 1, 2015 at 4:18pm

आदरणीय , बहर के मुताबिक आपका सुधार सही है ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 1, 2015 at 4:12pm

लूटती हैं ये हवाएं ही चमन को 

पर नहीं इल्जाम तय होता हवा पे 

आदरणीय गिरिराज भाईसाब कृपया इस संसोधन को देखने का कष्ट करें और मशविरा दें सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 1, 2015 at 3:54pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ...आपने बिलकुल सही कहा है सातवें शेर मं भी  वही समस्या है मैं उसमे सुधार की कोशिस करूंगा ..ग़ज़ल लेखन के इस सफ़र पर सफ़र के आगाज के साथ ही आपका साथ मिला ..आपसे सतत मार्गदर्शन मिला ..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 1, 2015 at 3:49pm

आदरणीय नूर जी ..मैं उस गलती को सुधारने की कोशिस कर रहा हूँ रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 1, 2015 at 3:47pm

आदरणीय नरेन्द्र सिंह जी ..ग़ज़ल पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

Comment by Samar kabeer on May 1, 2015 at 3:42pm
जनाब डा.आशुतोष मिश्रा जी,आदाब,अच्छे प्रयास के लिये आपको बधाई,जो बात मैं कहना चाहता था वो जनाब वीनस केसरी जी ने पहले ही कहदी है |

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