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ग़ज़ल : पूँजी की ग्रोथ रेट सवाई हुई तो है

बह्र : 221 2121 1221 212

 

रोटी की रेडियस, जो तिहाई हुई, तो है

पूँजी की ग्रोथ रेट सवाई हुई तो है

 

अपना भी घर जला है तो अब चीखने लगे

ये आग आप ही की लगाई हुई तो है

 

बारिश के इंतजार में सदियाँ गुज़र गईं

महलों के आसपास खुदाई हुई तो है

 

खाली भले है पेट मगर ये भी देखिए

छाती हवा से हम ने फुलाई हुई तो है

 

क्यूँ दर्द बढ़ रहा है मेरा, न्याय ने दवा

ज़ख़्मों के आस पास लगाई हुई तो है

 

वर्षों से इस ज़मीन में कुछ भी नहीं उगा

इसकी लहू से ख़ूब सिंचाई हुई तो है 

--------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 616

Comment

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 9, 2015 at 9:21pm

वर्षों से इस ज़मीन में कुछ भी नहीं उगा

इसकी लहू से ख़ूब सिंचाई हुई तो है 

बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ और भाव पूरी गजल संजीदा है सादर!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 8, 2015 at 6:13pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी ..जिस ग़ज़ल को एक बार पढने के बाद फिर और फिर पढने की इच्छा हो जाये तो वाकई में उस ग़ज़ल में कुछ तो है ..आपका अंदाज बेहद पसंद आया ..गहरी चोट करती शसक्त रचना ..आपको ढेर सारी बधाई सादर 

Comment by Nazeel on April 8, 2015 at 2:55pm

बहुत अच्छी रचना हुई है धर्मेंदर  भाई जी  ढेरों   मुबारकबाद। … 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 8, 2015 at 11:12am

अभी थोड़ी देर पहले आपका नवगीत देख रहा था. अब यह ग़ज़ल. बहुत खूब !
वैसे मतले में प्रयुक्त शब्द और लहज़ा आपका खास अंदाज़ है. लेकिन जो कुछ आपने आखिरी शेर के माध्य्म से साझा किया है वह विभोर कर रहा है.
ढेर सारी दाद कुबूल करें, आदरणीय धर्मेन्द्रजी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 8, 2015 at 10:05am

बहुत सुंदर गज़ल है आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत बहुत बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 7, 2015 at 9:44pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , आपकी सोच कुछ अलग ही हुआ करती है , आपकी गज़ल से कुछ न कुछ सीकह्ने को मिल जाता है ! बहुत सुन्दर !!  हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ॥

Comment by वीनस केसरी on April 7, 2015 at 8:37pm

वर्षों से इस ज़मीन में कुछ भी नहीं उगा

इसकी लहू से ख़ूब सिंचाई हुई तो है

वाह भाई जी
तेवर को सलाम


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 7, 2015 at 7:34pm
आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी बहुत बेहतरीन ग़ज़ल हुई है। एक एक अशआर कमाल का है। मतले और आखिरीसशेर पर विशेष बधाई। आपको पढ़कर सदैव प्रेरणा मिलती है।
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 7, 2015 at 7:01pm
खाली भले है पेट मगर ये भी देखिए
छाती हवा से हम ने फुलाई हुई तो है
क्या लिख दिया , बहुत सटीक, सुन्दर बधाई, आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार जी , सादर।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 7, 2015 at 4:56pm

आ० धर्मेन्द्र जी 

सभी अश'आर बहुत बढ़िया हुए हैं .

ये दो मुझे ख़ास पसंद आये ...

अपना भी घर जला है तो अब चीखने लगे

ये आग आप ही की लगाई हुई तो है

क्यूँ दर्द बढ़ रहा है मेरा, न्याय ने दवा

ज़ख़्मों के आस पास लगाई हुई तो है

 बहुत बहुत बधाई स्वीकारिये 

 

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