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गलत करने का हक़ -- डा० विजय शंकर

सही होने ,
सही कहने ,
सही करने का
अधिकार किसको चाहिए ॥
किसी को थोड़ा ,
किसी को ज्यादा ,
गलत कर लेने का
हक़ सबको चाहिए ॥
किसी-किसी को तो
गुनाह करने का अख्तियार ,
भी बेइंतिहा चाहिए ॥

दुनियाँ को अच्छा होना चाहिए ।
हमारे गुनाहों पे पर्दा होना चाहिए ।
हमारे गलत कामों पर चुप,
निगाह नीची , और चर्चा पर
कठोर प्रतिबंध होना चाहिए ।
दुनियाँ में कुछ तो
शर्म-औ-हया होनी चाहिए ।
हम हैं तो ये जहांन है, ज़माना है,
दुनियाँ को हमारा
शुक्रगुजार होना चाहिए ॥
क्या फरक पड़ता है ,
कोई दब गया पैरों के नीचे हमारे ,
या किसी के अरमान कुचल गए,
या मंसूबे किसी के डूब गए सारे ,
लोग तो बस हमारी आरती उतारें
सुबह - शाम पूजे पाँव हमारे ,
क्योंकि हमीं तो उनकें हैं पालनहारे,
हमीं तो उनकें, सबके हैं पालनहारे।।

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

Views: 680

Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on March 30, 2015 at 9:19pm
आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी ,रचना को आपकी स्वीकृति एवं उसकी मारक क्षमता की मुक्त प्रशस्ति के लिए बहुत बहुत आभार। बधाई ले लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 30, 2015 at 9:16pm
प्रिय मिथिलेश जी ,रचना को , उसके व्यंग को आपकी स्वीकृति एवं मुक्त प्रशस्ति के लिए बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 30, 2015 at 9:13pm
आदरणीय श्याम नारायण जी ,रचना को आपकी स्वीकृति एवं प्रशस्ति के लिए बहुत बहुत आभार , आपकी बधाई के लिए ह्रदय से धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 30, 2015 at 9:07pm
आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी , आपकी स्वीकृति से रचना को बल मिलता है , आपकी प्रशस्ति के लिए बहुत बहुत आभार , आपकी बधाई के लिए ह्रदय से धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 30, 2015 at 9:01pm
आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार , आप शायर हैं , जानकार हैं, आपकी प्रशस्ति के लिए बहुत बहुत आभार , आपकी बधाई के लिए ह्रदय से धन्यवाद , सादर।
Comment by Hari Prakash Dubey on March 30, 2015 at 7:37pm

दुनियाँ को अच्छा होना चाहिए ।
हमारे गुनाहों पे पर्दा होना चाहिए ।
हमारे गलत कामों पर चुप,
निगाह नीची , और चर्चा पर
कठोर प्रतिबंध होना चाहिए.....आदरणीय डॉ विजय शंकर सर, बहुत ही मारक रचना है वर्तमान व्यवस्था पर , इस सुन्दर प्रस्तुति पर बधाई आपको ! सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 30, 2015 at 5:11pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर, बेहतरीन कविता, बेहतरीन व्यंग्य ..... 

दुनियाँ को अच्छा होना चाहिए ।
हमारे गुनाहों पे पर्दा होना चाहिए ।
हमारे गलत कामों पर चुप,
निगाह नीची , और चर्चा पर
कठोर प्रतिबंध होना चाहिए ।
दुनियाँ में कुछ तो
शर्म-औ-हया होनी चाहिए ।
हम हैं तो ये जहांन है, ज़माना है,
दुनियाँ को हमारा
शुक्रगुजार होना चाहिए ॥
क्या फरक पड़ता है ,
कोई दब गया पैरों के नीचे हमारे ,
या किसी के अरमान कुचल गए,
या मंसूबे किसी के डूब गए सारे ,
लोग तो बस हमारी आरती उतारें
सुबह - शाम पूजे पाँव हमारे ,
क्योंकि हमीं तो उनकें हैं पालनहारे..... बेहतरीन 

Comment by Shyam Narain Verma on March 30, 2015 at 4:52pm
सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 30, 2015 at 1:11pm

आ०विजय सर !

बहुत  सही  बात  की आपने . क्या फरक पड़ता है ,
कोई दब गया पैरों के नीचे हमारे ,
या किसी के अरमान कुचल गए,
या मंसूबे किसी के डूब गए सारे ,
लोग तो बस हमारी आरती उतारें
सुबह - शाम पूजे पाँव हमारे ,
क्योंकि हमीं तो उनकें हैं पालनहारे,------------- बेहतरीन , सादर .

Comment by Samar kabeer on March 30, 2015 at 10:58am
आली जनाब डा.विजय शंकर जी,आदाब,अच्छी प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकार करें,एक एक शब्द बेहद नपा तुला है |

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