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सब्जी वाला है वो

गरीब है 
पर स्वाभिमानी बहुत है 
सब्जी की ढकेल 
शहर की कोलोनियों में 
घुमाता है
जोर जोर से सब्जियों के
नाम की आबाज
लगाता है
आखिर में ले लो साहब
कहकर जरूर चिल्लाता है
कुछ आदतें हो गयी हैं
उस पर हावी
कल की सब्जियों को भी 
कह जाता है ताजी
कुछ सब्जियाँ
पूरी बिक चुकी होती हैं
उनका भी नाम पुकार जाता है
बीच बीच में पानी के छींटों से
सब्जियों को सँवार जाता है
ऊँचे लोगों की नीची हरकतों को 
बखूबी पहचानता है
लाखों कमाने वालों की 
रुपये दो रुपये की चिक चिक 
को जानता है
पाव सब्जी के बदले 
चार बातें सुना जाते हैं
ये ऊँचे लोग
पता नहीं फिर भी क्यों कहाते हैं 
ये ,ऊँचे लोग
माँ -बाबूजी ,भाई-भाभी
कोई तो नहीं रहता है इनके साथ
इसीलिये तो चार भिण्डियों से
बन जाती है बात
बडे लोगों की छोटी हरकतें 
सहन कर जाता है वो
क्योंकि रोज माँ-बाबूजी की दवाई 
लेकर घर जाता है वो
शाबाश !सब्जी वाले 
हकीकत में तो बडे लोगों से बडा है तू
लाख-गरीब होकर भी 
माँ-बाबूजी के साथ खडा है तू

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित





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Comment by umesh katara on March 31, 2015 at 6:49pm

आदरणीय Hari Prakash Dubeyजी आभार

Comment by Hari Prakash Dubey on March 30, 2015 at 8:39pm

सुन्दर रचना आदरणीय उमेश कटारा जी ! बधाई 

Comment by umesh katara on March 28, 2015 at 1:36pm

आदरणीय ANJU MISHRA जी आभार

Comment by umesh katara on March 28, 2015 at 1:36pm

आदरणीय pratibha tripathi जी आभार

Comment by ANJU MISHRA on March 28, 2015 at 1:00pm

सुंदर रचना !

Comment by umesh katara on March 28, 2015 at 9:17am

आदरणीय बृजेश नीरज जी मैं आपके विचार से सहमत हूँ और मैं भी जिज्ञासू हूँ कि इस विचार पर कोई प्रबुद्ध जन मागर्दर्शन करें

Comment by बृजेश नीरज on March 28, 2015 at 9:00am
आदरणीय मैं तो नया हूँ यह डूबने जैसी गूढ़ बातें समझ पाने में समय है। मेरी जिज्ञासा शिल्प को लेकर थी। आप सभी के मार्गदर्शन की प्रतीक्षा है।
Comment by umesh katara on March 28, 2015 at 8:52am

आदरणीय बृजेश नीरज जी आभार अगर कविता को गद्य की तरह पढोगे तो कविता कविता न होकर गद्य जैसा ही लगेगी 
जरूरत है कविता को कविता की तरह पढा जाये और गद्य को गद्य की तरह
आप कविता की तरह डूबकर पढें तो शायद आपको इस कविता में कविता नजर आजेये मित्र अन्यथा न लें मेरे विचार मैंने रख दिया है
इस मंच पर बहुत से गुणी और सुधीजन मौजूद हैं मेरा भी उनसे निवेदन है कि बृजेश नीरज जी की जिज्ञासा के बारे में विचार व्यक्त करें और मार्गदर्शन करें .....साभार

Comment by बृजेश नीरज on March 28, 2015 at 7:30am
आपकी इस रचना को देखकर मेरे प्रश्न उठा है कृपया आप तथा इस मंच के अन्य विद्वान मेरा मार्गदर्शन करें। गद्य और नयी कविता में क्या अंतर है?
Comment by umesh katara on March 27, 2015 at 7:40pm

आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी बधाई 

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