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गुल से है परेशां गुलिस्तां सारा
भंवरे से दिल लगाने की ज़िद उसकी नहीं गवारा
मगर गुल जानता है कि आज काँटों का साथ
फिर माली के हाथों किसी अंजान के साथ
गुलशन से बिदाई का मसला है सारा 


बिछुड़ने का फिक्र नहीं उसको
कल का क्या.... आज तो जी लेने दो उसको
काट शाख़ से सब सूंघेंगे एक दिन
फिर अगले दिन मसल डालेंगे ये उसको

भंवरा तो रोज़ आ कर चूमता है
मंडराता है चारो तरफ लुभाता है उसको
अपनी गुंजन के गीत सुनाता है
और सुबह फिर मिलने का वादा दे जाता है उसको
क्या गुनाह हुआ है गुल से
गर भंवरे से दिल लगाने की ज़िद लगाई है
क्यों गुलिस्तां में बगावत उठ आयी है
जैसे चाहे जी लेने दो उसको 


ऐ गुलिस्तां.....
यहाँ तो सबके कटने की बारी आयी है
मगर ये बात सिर्फ़ गुल को ही समझ आयी है !!

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 26, 2015 at 12:33pm

आदरणीय :

Hari Prakash Dubey जी

गिरिराज भंडारी जी 

Dr Ashutosh Mishra जी 

आप सब का हार्दिक आभार  ....सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 26, 2015 at 9:25am

आदरणीय मोहन सेठी जी सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई ,सादर !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 25, 2015 at 10:23pm

आदरणीय मोहन भाई , खूबसूरत रचना के लिये आपको बधाई ॥

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 25, 2015 at 5:06pm

आदरणीय मोहन जी इस सुंदर कृति के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 25, 2015 at 11:56am

आदरणीय  Shyam Mathpal जी आभार ...सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 25, 2015 at 11:56am

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी प्रोत्साहन के लिये धन्यवाद ...सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 25, 2015 at 11:55am

आदरणीय  मिथिलेश वामनकर जी आभार ...सादर 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 24, 2015 at 8:29pm

आदरणीय मोहन सेठी जी सुन्दर रचना हेतु हार्दिक बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 24, 2015 at 5:31pm

आ० मोहन सेठी जी

मरण तो ध्रुव सत्य है . किसी को  इसकी फ़िक्र है तो किसी को नहीं है . सुन्दर भाव .  सादर .

Comment by Shyam Mathpal on March 24, 2015 at 11:23am

आ. मोहन सेठी जी, 

सुंदर रचना के लिए बधाई ..  

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