गुल से है परेशां गुलिस्तां सारा
भंवरे से दिल लगाने की ज़िद उसकी नहीं गवारा
मगर गुल जानता है कि आज काँटों का साथ
फिर माली के हाथों किसी अंजान के साथ
गुलशन से बिदाई का मसला है सारा
बिछुड़ने का फिक्र नहीं उसको
कल का क्या.... आज तो जी लेने दो उसको
काट शाख़ से सब सूंघेंगे एक दिन
फिर अगले दिन मसल डालेंगे ये उसको
भंवरा तो रोज़ आ कर चूमता है
मंडराता है चारो तरफ लुभाता है उसको
अपनी गुंजन के गीत सुनाता है
और सुबह फिर मिलने का वादा दे जाता है उसको
क्या गुनाह हुआ है गुल से
गर भंवरे से दिल लगाने की ज़िद लगाई है
क्यों गुलिस्तां में बगावत उठ आयी है
जैसे चाहे जी लेने दो उसको
ऐ गुलिस्तां.....
यहाँ तो सबके कटने की बारी आयी है
मगर ये बात सिर्फ़ गुल को ही समझ आयी है !!
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय :
Hari Prakash Dubey जी
गिरिराज भंडारी जी
Dr Ashutosh Mishra जी
आप सब का हार्दिक आभार ....सादर
आदरणीय मोहन सेठी जी सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई ,सादर !
आदरणीय मोहन भाई , खूबसूरत रचना के लिये आपको बधाई ॥
आदरणीय मोहन जी इस सुंदर कृति के लिए हार्दिक बधाई
आदरणीय Shyam Mathpal जी आभार ...सादर
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी प्रोत्साहन के लिये धन्यवाद ...सादर
आदरणीय मोहन सेठी जी सुन्दर रचना हेतु हार्दिक बधाई
आ० मोहन सेठी जी
मरण तो ध्रुव सत्य है . किसी को इसकी फ़िक्र है तो किसी को नहीं है . सुन्दर भाव . सादर .
आ. मोहन सेठी जी,
सुंदर रचना के लिए बधाई ..
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