212---1222---212---1222 |
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धूप भी नहीं मिलती छाँव भी नहीं मिलती |
ताकतों के साए में ज़िन्दगी नहीं मिलती |
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ज़िन्दगी मुकम्मल हो ये कभी नहीं मुमकिन |
गर मिले समंदर तो तिश्नगी नहीं मिलती |
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आसमां सियासत से रूबरू हुआ जबसे |
चाँद भी नहीं मिलता चांदनी नहीं मिलती |
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जाम के हवाले से दो जहां उठा लाया |
मैकशी के आलम में बूँद भी नहीं मिलती |
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मत करो कदमबोसी दूरियां जरूरी है |
ज्यूं तले चरागों के रौशनी नहीं मिलती |
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बात में सचाई हो, रूह में खुदाई हो |
आदमी नहीं जिसमें कुछ कमी नहीं मिलती |
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धुंध ये अजीयत की, खा गई नसीबों को |
हाथ की लकीरें भी साफ़ सी नहीं मिलती |
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हसरतों के साये में बेकफन मरासिम है |
आँख का मरा पानी अब नमी नहीं मिलती |
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Comment
आ० वामनकर जी
खूबसूरत . गजलगोई में आपका जवाब नहीं. सादर .
व्वाआआआआअह्ह्ह्ह.. ज़बरदस्त ग़ज़ल हुई .. हर शेर उम्दा .. मजा आ गया
ज़िन्दगी मुकम्मल हो ये कभी नहीं मुमकिन
गर मिले समंदर तो तिश्नगी नहीं मिलती ------------------- क्या बात क्या बात !!
आसमां सियासत से रूबरू हुआ जबसे
चाँद भी नहीं मिलता चांदनी नहीं मिलती --- एकदम सच है सर क्या कहने
बात में सचाई हो, रूह में खुदाई हो
आदमी नहीं जिसमें कुछ कमी नहीं मिलती ---- माशा अल्लाह क्या शेर कहा है
दिली दाद कुबूल करें आदरणीय मिथिलेश जी
क्या बात है .... बहुत उम्दा | बधाई आप को |
Bahut umda bhai waaah waaah waaaah. bahut khooob. mazaaa aa gya. mubarak ho
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