भँवरा हूँ ......
फूल दर फूल घूमना आदत मेरी
हर फूल को चूमना चाहत मेरी
फूल कहाँ पहचानते हैं मुझे
मेरे जैसे कई आते हैं हर रोज़
बिन बुलाये यहाँ !
मेरी तो फ़ितरत है
नये मन्ज़र ढूँढ़ना
रुक तो तभी पाऊंगा
जब किसी फूल के
ख़ूनी पंजों में जकड़ा जाऊंगा
वर्ना उड़ता उड़ता
बहुत दूर निकल जाऊंगा.........
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
इस सुन्दर रचना पर आपको हार्दिक बधाई आ. Mohan Sethi 'इंतज़ार जी |
बहुत बहुत बधाई आदरणीय मोहन सेठी जी इस रचना के लिये
आदरणीय ...आप सभी को हार्दिक आभार इस रचना को सराहने के लिये ...Er. Ganesh Jee "Bagi" जी गलती सुधार दी गई है धन्यवाद ...आप लोग ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहें तो साहस बना रहेगा !....सादर
//रुक तो तभी पाऊंगा
जब किसी फूल के
ख़ूनी पंजों में जकड़ा जाऊंगा//
सुन्दर कविता, इस अभिव्यक्ति हेतु बधाई आदरणीय मोहन सेठी जी.
बहुत सुन्दर !! आदरणीय मोहन भाई , हार्दिक बधाई ।
आदरणीय मोहन सेठी जी, ,सुन्दर रचना ,बधाई प्रेषित ! सादर
रुक तो तभी पायूँगा
जब किसी फूल के
ख़ूनी पंजों में जकड़ जाऊंगा
वर्ना उड़ता उड़ता
बहुत दूर निकल जाऊंगा.........---------------- अति सुन्दर .आ० मोहन सेठी जी .सादर .
सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाइयाँ । |
Aadarniya Mohan sethi ji,
Kya baat hai. Kya baat hai. sundar bhav....sundar rachna.. Dheron badhai.
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