For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पल पल मुझ से रूठा है
हर पल यूँ तो झूठा है
सच और झूठ का ताना बाना
जीवन का रूप अनूठा है
इक पल में वो अपने दीखे
दो पल में कई सपने दीखे
कुछ पल में सब बिखर गये
यूँ साथ हमारा छूटा है
क्या पल पल मुझसे रूठा है
या जग सारा ये झूठा है !

मैं दीया हूँ तू बाती है
दुनिया क्यूँ तुझे जलाती है
मुझ पे भी कालिख आती है
प्यार के झोंके जब
आग बुझाने आते हैं
बेदर्द नहीं सह पाते हैं 
हाथ बढ़ा ढक लेते हैं
आग को और भड़काते हैं
क्या जग सारा ये झूठा है ?
या ... पल पल मुझसे रूठा है !!

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 558

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 18, 2015 at 5:40am

आदरणीय मोहन सेठीजी, आपके उत्साह और आपकी संलग्नता के प्रति सादर भाव हैं. रचना के लिए शुभकामनाएँ ..

सतत प्रयासरत रहें, आदरणीय.
शुभेच्छाएँ

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 17, 2015 at 4:38am

आदरणीय  Shyam Mathpal जी प्रोत्साहन के लिये धन्यवाद ...आभार 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 17, 2015 at 4:37am

आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी पसन्दगी के लिये आभार ...सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 17, 2015 at 4:36am

आदरणीय  maharshi tripathi जी आभार ...सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 17, 2015 at 4:35am

आदरणीय Hari Prakash Dubey जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका ..सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 17, 2015 at 4:34am

आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आभार ...सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 16, 2015 at 7:53pm

आ० मोहन सेठी जी

सुन्दर प्रयास  . सादर .

Comment by Hari Prakash Dubey on March 16, 2015 at 7:28pm

आदरणीय मोहन सेठी जी, सुन्दर प्रस्तुति,

कुछ पल में सब बिखर गये

यूँ साथ हमारा छूटा है

क्या पल पल मुझसे रूठा है

या जग सारा ये झूठा है ! ,सुन्दर रचना ,बधाई प्रेषित ! सादर

Comment by maharshi tripathi on March 16, 2015 at 6:12pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति आ.Mohan Sethi 'इंतज़ार' जी |

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 16, 2015 at 11:35am
मैं दिया हूँ तू बाती है
दुनिया क्यूँ तुझे जलाती है
मुझ पे भी कालिख आती है
बहुत सुन्दर , आदरणीय मोहन सेठी जी , बधाई, सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted discussions
9 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Jun 5
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Jun 5
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Jun 5
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service