For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

होली ग़ज़ल-उस बस्ती में

२११-२११-२११-२११-२११-२११

होली का कुछ और मज़ा था उस बस्ती में

जश्न नहीं था एक नशा था उस बस्ती में

 

दिल के जंगल में यादों के टेसू लहके

तेरा मेरा प्यार नया था उस बस्ती में

 

शहरों में क्या धूम मचेगी, होली पर वो

भांग घुटी थी रंग जमा था उस बस्ती में

 

चंग बजाते घर घर जाते रसियों के दल   

हरदम दिल का द्वार खुला था उस बस्ती में

 

जोश युवाओं का भी ठंडा ठंडा है अब

बूढों का भी जोश युवा था उस बस्ती में

 

पापड़ गुझिये बेसन-चक्की ठंडाई भी

मनुहारों का मान बड़ा था उस बस्ती में

 

शोख़ गुलालों और अबीरों के वो बादल

रंगोली से चौक सजा था उस बस्ती में

 

सूख गया तन लेकिन अब तक मन गीला है

पिचकारी में नेह भरा था उस बस्ती में

 

रंग नहीं अब चढ़ता कोई मेरे जी पर

तूने ऐसा रंग दिया था उस बस्ती में

 

फ़ीका फ़ीका सूखा सूखा बीत गया लो

इस फागुन का चाव बड़ा था उस बस्ती में

 

हर होली पर “देसी” पीकर जोकर बनता

इस ‘बाबू’ का एक सखा था उस बस्ती में

ढप की थापों पर वो गींदड़  गेर-भवाई                गींदड़  गेर-भवाई = लोक नृत्य

चेत कहाँ था फ़ाग चढ़ा था उस बस्ती में               चेत = चेत्र मास \चेतना ,बोध

 

तुम ‘खुरशीद’ भले भूले अब उस बस्ती को

तुमने जीवन ख़ूब जिया था उस बस्ती में

 

 मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 895

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by khursheed khairadi on March 12, 2015 at 12:43pm

आदरणीय सौरभ सर ,हृदय से आभारी हूं कि आपने मेरे आग्रह पर मेरे बचपन की उस बस्ती की सैर की ....सच कहूँ तो इस ग़ज़ल को कहते समय मेरी आँखों से सावन झर रहा था |मेरा बचपन 'लेबर कॉलोनी ' में बीता था , मैं आज जोधपुर जैसे शहर में रेल्वे में इंजिनियर हूं ,मगर बचपन की बस्ती अभी भी वहीं की वहीं है |जो जीवन मैंने वहाँ जिया ....वो सुख नौ निधियां भी नहीं दे सकती है |सादर आभार आपका 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 12, 2015 at 12:22pm

कमाल ! बस कमाल !!
’उस बस्ती में’ की टेक पर जिस माहौल की संरचना हुई है, आदरणीय खुर्शीद भाई, वह अंदर तक नम कर गयी है. सिर धुनते हैं हम, हूक भरता है दिल ! क्या कहूँ समझमें नहीं आता !! कभी मिलना तो आपके हाथों की नरमी को महसूस करूँगा.
आपकी ग़ज़लों की तासीर ऐसी है कि उनसे उमगती धरती की भीनी-सोंधी महक का नशा छा जाता है और हम देर तक अनमनाये हुए पड़े रहते हैं.
दिल से शुभकामनाएँ

Comment by भुवन निस्तेज on March 7, 2015 at 2:47pm
मन लुभावन बस्ती ! बधाई निवेदित !
Comment by khursheed khairadi on March 4, 2015 at 8:35am

आदरणीय लक्ष्मण सर, आदरनिय दिनेश भाईसाहब, आप के स्नेह का ह्रदय तल से आभार |सादर | 

Comment by khursheed khairadi on March 4, 2015 at 8:34am

आदरणीया प्रतिभा जी ,आदरणीय नदीम साहब ,ग़ज़ल आपको पुरानी स्म्रतियों की और लेकर गई ,यानि मेरी मनोदशा के आप सहभागी बनें हैं |आप दोनों का हृदयतल से आभार |सादर |

Comment by khursheed khairadi on March 4, 2015 at 8:31am

आदरणीय गिरिराज सर ,आदरणीय मिथिलेश जी ,आप जैसे ग़ज़ल प्रेमियों और उम्दा ग़ज़लकारों की दाद मिलना ,कलम को नया उत्साह मिलने जैसा है |स्नेह बनाये रखियेगा |सादर आभार | 

Comment by khursheed khairadi on March 3, 2015 at 7:38pm

आदरणीय जीतेन्दर जी ,महर्षि त्रिपाठी जी ,हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ |स्नेह बनाये रखियेगा |सादर |

Comment by khursheed khairadi on March 3, 2015 at 7:36pm

आदरणीय नदीम साहब ,बहुत बहुत  शुक्रिया |सादर |

Comment by khursheed khairadi on March 3, 2015 at 7:35pm

आदरणीय गोपाल नारायण सर ,आप तो कबीर की उलटबांसी सी बात कर रहे हैं ,अभी तो मैं आप महानुभवों की स्नेह छाया में काफी कुछ सीख  रहा हूँ |अनुज को अनुज ही रहने दीजिये सर ,इस तरह  अग्रजों का आशीर्वाद मिलता रहता है |सादर अभिनंदन | 

Comment by khursheed khairadi on March 3, 2015 at 7:31pm

आदरणीय विजशंकर सर ,आदरणीय हरिप्रकाश जी ,आपका स्नेह मेरी ताकत है .मुझे इसी तरह स्नेह से सराबोर रखियेगा |सादर आभार |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service