For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")


1.    
पावन पवित्र प्रेम को, करते क्यों बदनाम ।
स्वार्थ मोह में क्यों भला, देकर प्रेमी जान ।।
2.    
एक प्रश्न मैं पूछती, देना मुझे जवाब ।
छोरा छोरी क्यो भला, करते प्रेम जनाब ।।
3.    
तेरा सच्चा प्यार है, मेरा है बेकार ।
माॅ की ममता क्यों भला, होती है लाचार ।।
4.    
सोलह हजार आठ में, मिले न राधा नाम ।
सारा जग फिर क्यो भला, जपते राधे श्याम ।।
5.    
मातु पिता के बात पर, जिसने किया विवाह ।
होते उनके भी प्रबल, इक दूजे पर चाह ।।
................................
मौलिक अप्रकाशित

Views: 579

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 26, 2015 at 11:07pm
सुन्दर , भाव पूर्ण प्रस्तुति, आदरणीय रमेश कुमार चौहान जी, सादर
Comment by रमेश कुमार चौहान on February 26, 2015 at 10:56pm

आदरणीय त्रिपाढीजी, वामनकरजी, एवं दुबेजी आप सभी ने  रचना के भाव को दिया, आप सभी का हार्दिक आभार

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 26, 2015 at 10:54pm

आदरणीय श्रीवास्तवजी एवं लड़ीवालाजी आपके मार्गदर्शन स्वीकारर्य सादर धन्यवाद

Comment by Hari Prakash Dubey on February 26, 2015 at 9:14pm

आदरणीय रमेश जी इस सुन्दर रचना पर बधाई आपको !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 26, 2015 at 7:07pm
आदरणीय रमेश जी सुन्दर दोहावली हेतु बधाई। गुणीजनों के मार्गदर्शन पर अवश्य ध्यान दे। थोड़ी सी कसर है।
Comment by maharshi tripathi on February 26, 2015 at 5:14pm

मातु पिता के बात पर, जिसने किया विवाह ।
होते उनके भी प्रबल, इक दूजे पर चाह ।।
................................असल प्रेम के गुर बताती सुन्दर रचना ,,बधाई स्वीकारें आ.रमेश जी |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 26, 2015 at 4:08pm

प्रेम विवाह पर लाजवाब दोहे रचे है,हार्दिक बधाई | प्रथम दोहे के इस प्रकार लिखा जान उचित लगता है, देखे -

पावन पवित्र प्रेम को, करते क्यों बदनाम ।  ---  स्वार्थ मोह में क्यों भला, देकर प्रेम जान,
स्वार्थ मोह में क्यों भला, देकर प्रेमी जान ।।      पावन पवित्र प्रेम को, करते क्यों बदनाम ?

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 26, 2015 at 3:15pm

आ० रमेश जी

आपके प्रश्न बड़े मजेदार है i भाव रचना सुघर है i शिल्प की कुछ बात करता हूँ -

सोलह हजार और आठ में प्रवाह बाधित प्रतीत होता है i

मातु-पिता के  बात पर ---------यहाँ के की जगह की होना चाहिए

होते उनके भी प्रबल, इक दूजे पर चाह ।।-----------होती उनमे भी प्रबल  इक दूजे की चाह i   ------ सादर i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
15 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
15 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
16 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
17 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
20 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
21 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service