For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - निर्मल नदीम

गिरा के अपनी ही आँखों से खून काग़ज़ पर,
तलाश करता रहा दिल सुकून काग़ज़ पर.


जला के खाक ही कर दे जहान को आशिक़,
अगर उतार दे अपना जुनून काग़ज़ पर..

ग़ज़ल का एक भी मिसरा नहीं कहा मैनें,
थिरक रहा है किसी का फुसून काग़ज़ पर.

कहीं ये अक्स - ए- तमन्ना ही तो नहीं तेरा,
उभर के आया है जो सर निगून काग़ज़ पर..

तमाम रात की तन्हाइयों से छूटा तो
तड़प उठा है वफ़ा का जुनून काग़ज़ पर..

"नदीम" को भी बुलाना अदब की महफ़िल में,
सजा के लाता है दर्द - ए - दुरून काग़ज़ पर..


निर्मल नदीम (मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1038

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 26, 2015 at 11:58am
हा हा हा बहुत आभार खुर्शीद सर।
आप लफ्ज़ ग्रुप के सशक्त रचनाकार है।
आदरणीय नदीम जी बहुत अच्छी गज़लें कहते है और फेसबुक पर जो अन्य गज़लें पोस्ट होती है उन्हें अरूज़ अनुसार सुधारने के लिए सुझाव भी साझा करते है। नदीम जी के कमेंट्स पढ़कर ही उनसें उनकी ग़ज़लों तक पहुंच हुई थी।
Comment by MAHIMA SHREE on February 26, 2015 at 11:30am

गिरा के अपनी ही आँखों से खून काग़ज़ पर,
तलाश करता रहा दिल सुकून काग़ज़ पर.....बहुत -2 बधाई आपको

Comment by Nirmal Nadeem on February 26, 2015 at 10:06am
खुरशीद भाई शुक्रिया।

मितजिलेश सर मुझे यह नही मालूम था। आइन्दा ख़याल रखूँगा
Comment by khursheed khairadi on February 26, 2015 at 9:48am

आदरणीय मिथिलेश जी सर आपकी सक्रियता वन्दनीय है ,मैं तो केवल दो पोर्टल , "लफ्ज़ ग्रुप "और "ओ बी ओ " पर उपस्तिथ रहने की कोशिश में ही बरहम (अस्त-व्यस्त ) हो जाता हूं |आप कहाँ कहाँ विराजमान हैं भगवन ,,,धन्य है |सोशल साइट्स पर क्या ऐसी ग़ज़ल है जो आप त्रिकालदर्शी के सजग नयन से न गुजरी हो |धन्य हैं आप |शत शत प्रणाम (कृपया प्रहसन को अन्यथा न लें ) हा...हा....हा..| सादर |

Comment by khursheed khairadi on February 26, 2015 at 9:42am

तमाम रात की तन्हाइयों से छूटा तो
तड़प उठा है वफ़ा का जुनून काग़ज़ पर..

"नदीम" को भी बुलाना अदब की महफ़िल में,
सजा के लाता है दर्द - ए - दुरून काग़ज़ पर..

 आदरणीय नदीम साहब ,उम्दा ग़ज़ल हुई है |ढेरों दाद कबूल फरमावें |सादर अभिनन्दन |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 26, 2015 at 2:24am

आदरणीय निर्मल नदीम जी, आपकी ग़ज़ल से गुजरते हुए लग रहा था कि आपसे और आपकी ग़ज़लों से पहले भी भेंट हुई है किन्तु याद नहीं आ रहा था. आपका obo पर पर्सनल पेज देखा तो ये आपकी पहली पोस्ट थी. बहुत याद करने पर याद आया कि फेसबुकिया ग़ज़लों पर कमेंट्स के दौरान आपके कमेंट्स पढ़े और फिर आपकी गज़लें भी पढ़ी. आपकी ये ग़ज़ल फेसबुक पर आप 20 फरवरी को ही पोस्ट कर चुके है इसलिए ये ग़ज़ल अप्रकाशित नहीं रही. इस मंच के नियमानुसार पूर्व में प्रकाशित रचना को पोस्ट करना वर्जित है. इसलिए आपसे निवेदन है कि केवल अप्रकाशित रचनाएँ ही पोस्ट करें ताकि  मंच के नियम का उल्लंघन न हो. सुलभ सन्दर्भ हेतु -  

Comment by Nirmal Nadeem on February 26, 2015 at 1:21am
hari prakash dubey sahab nawazish aapki
Comment by Nirmal Nadeem on February 26, 2015 at 1:21am
ajay sharma sahab aapke mashwire pr amal karte huye aainda diya karunga.
Comment by Hari Prakash Dubey on February 25, 2015 at 11:44pm

आदरणीय निर्मल नदीम जी बेहतरीन रचना है हार्दिक बधाई आपको !

Comment by ajay sharma on February 25, 2015 at 10:52pm

urdu ke zyada klisht words ke priyog ki isthiti me unke arth bhi de diye jaye to aur bhi behar hoga .. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
Wednesday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service